गोंडा: पढ़ाई लिखाई छोड़ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ थामा था विद्रोह का झंडा, मां भारती के वीर सपूतों ने जिले में जगाई थी स्वतंत्रता आंदोलन की अलख 

काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल रहे युवा क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी के बलिदान से सैकड़ों युवाओं को मिली थी प्रेरणा 

गोंडा: पढ़ाई लिखाई छोड़ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ थामा था विद्रोह का झंडा, मां भारती के वीर सपूतों ने जिले में जगाई थी स्वतंत्रता आंदोलन की अलख 

गोंडा, अमृत विचार। देश की आजादी में जिले के कई ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे जिन्होंने लोगों के मन में देश प्रेम की अलख जगायी और उन्हे आजादी की लड़ाई में भागीदार बनने की प्रेरणा दी। इनमें बाबू ईश्वर शरण से लेकर बाबू लाल बिहारी टंडन तक रहे जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी तक‌ संघर्ष करते रहे।

इसके पहले वर्ष 1927 में काकोरी कांड के नायक अमर शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी के बलिदान ने जिले के सैकड़ों युवाओं के दिल में क्रांति का मशाल जला दी और वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का झंडा लेकर उठ खड़े हुए। गोलागंज मुहल्ले के गुरु प्रसाद ने युवावस्था में ही कांग्रेस आन्दोलनों में खुलकर नेतृत्व किया। वर्ष 1940 में गिरफ्तार हुए। जेल की यातना सही।

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इतना ही नही स्वाभिमानी गुरुप्रसाद ने परिवार द्वारा सम्पत्ति से बेदखल होकर भी कांग्रेस का दामन न छोडा और आजादी के बाद भी बच्चों को पालने के लिए वाराणसी में पत्रकारिता और नौकरी किया लेकिन सर्कार का सेनानी पेंशन स्वीकार नहीं किया। बडगांव के मालिक राम छाबड़ा व छोटेलाल गुप्ता ने अपने परिवार के जमे जमाये व्यवसाय को दांव पर लगाकर स्वतंत्रता संग्राम में सहभागिता कर इतिहास के पन्नों में नाम दर्ज कराया। बभनान कस्बे के निकट सिसई रानीपुर निवासी सम्पन्न किसान

पंडित दातादीन मिश्र ने जनपद के सेनानी तीर्थ के नाम से विख्यात खजुरी गांव के सेनानियों से कन्धे से कन्धा मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ आजीवन संघर्ष किया। मार्च 1922 में सिसई रानीपुर में बाबू द्वारिका सिंह ठाकुर बब्बन सिंह उमराव सिंह मथुरा सिंह के सहयोग से कांग्रेस का विराट किसान सम्मेलन का आयोजन किया। 1951 में मनकापुर से तत्कालीन उतरौला पूर्वी से विधायक रहे।

कांग्रेस के निडर सिपाही दातादीन मिश्र के परिवार में बस्ती के क्रांतिकारी ब्रह्मचारी बाबा मतदाता के रूप पंजीकृत थे। आजादी के 77 साल बाद भी इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कहानी उनके जोश और जज्बे की याद दिलाती है जिसकी बदौलत आज गुलामी की जंजीरो से मुक्त होकर हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं। 

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मैं मरने नहीं वरन आजाद भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं- अमर शहीद राजेंद्र नाथ लाहिडी
वर्तमान बांग्लादेश के पावना जिले में जन्में और वाराणसी में पले क्रांतिकारी राजेन्द्र लाहिडी को 17 दिसम्बर 1927 को काकोरी कांड में गोंडा जेल में फांसी दी गई। फांसी के दो दिन पूर्व  लाहिडी परिवार के दो-तीन सदस्य वाराणसी से गोण्डा आ कर श्यामा चरण के यहां मोहल्ला राधा कुंड में ठहर हुए थे। फांसी के एक दिवस पूर्व लाहिडी ने अपने बहन के नाम लिखे गए पत्र में आशीर्वाद मांगते हुए लिखा था- कि मैं मरने नहीं, देश को आजाद करने के लिए पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं।

17 दिसंबर को भोर के 4 बजे नियत तारीख से 2 दिन पहले उन्हें फांसी दे दी गई। उनकी इच्छा अनुसार लाहिडी परिवार तथा लाल बिहारी टंडन और ईश्वर शरण आदि नेताओं ने जेल के पीछे स्थित अरहर की खेत में छुपकर फांसी के समय वंदे मातरम का नारा लगाकर जय घोष किया। वह काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल क्रांतिकारियों में सबसे युवा क्रांतिकारी थे। नगर स्थित जेल रोड पर ग्राम पंचायत छावनी सरकार में अमर शहीद राजेंद्र लहरी की समाधि है। 

बाबू ईश्वर शरण के नाम है जनतंत्र का प्रथम प्रस्ताव पढ़ने का गौरव
श्याम कुटीर मोहल्ला राधा कुंड में 5 अगस्त 1902 को बाबू ईश्वर शरण का जन्म हुआ था। परिवार से आर्य समाज की विचारधारा एवं राजनीतिक चेतना की बिरासत उन्हें बचपन से ही मिली। किशोरावस्था की खेलकूद की उम्र में इन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली और कांग्रेस के आन्दोलनों में खुलकर भाग लेने लगे। 26 जनवरी 1930 को इन्होंने जनतंत्र दिवस मनाया।  

इस प्रयास में इन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया। मुकदमें में उन्हें 6 माह की कैद  और ₹100 के अर्थ दंड से दंडित किया गया। नमक आंदोलन ट, असहयोग आन्दोलन, अंग्रेजों भारत छोडो जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया। बाबू ईश्वर शरण ब्रिटिश हुकूमत में दो बार 1936 व 1945 और आजादी के बाद दो कुल चार बार विधानसभा के विधायक व  गोण्डा नगर पालिका के अध्यक्ष रहे।

प्रेम पकड़िया मैदान गोण्डा व चौक बहराइच में जनतंत्र का प्रथम प्रस्ताव पढ़ने का गौरव भी उन्हें प्राप्त हुआ। उनके राधा कुंड स्थित आवास पर स्वतंत्रता स्वतंत्रता संग्राम के वरिष्ठ नेताओं में पंजाब केसरी लाला लाजपत राय, महामना मदन मोहन मालवीय, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, मौलाना अबुल कलाम आजाद, आचार्य नरेंद्र देव एवं जयप्रकाश नारायण जैसे महान विभूतियों ने पदार्पण किया था। 

बाबू लाल बिहारी टंडन ने गांधी पार्क में स्थापित करायी राष्ट्रपिता की प्रतिमा 
जनपद के राजनीतिक एवं सामाजिक सौर- मंडल के अग्रणी सेनानी बाबू लाल बिहारी टंडन का जन्म 14 जून 1901 को बरेली नगर के एक संपन्न खत्री परिवार में हुआ था। बरेली में प्राथमिक शिक्षा समाप्त करने के बाद बालक टंडन अपने पिता के साथ गोण्डा चले आए जो उन दिनों यहां एक फार्म के प्रबंधक थे। सन 1920 में असहयोग आंदोलन छिड़ने पर गांधी जी के राष्ट्रीय आव्हान पर लाल बिहारी टंडन विद्यार्थी जीवन छोड़कर समाज सेवा एवं कांग्रेस आंदोलन में भाग लेने लगे।

वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लिया जिसमें उन्हें 6 माह की कैद और 15 रुपए जुर्माने की सजा हुई। सन 1934 में पालिका सदस्य और 1936 में प्रांतीय असेंबली के चुनाव में राजा जगदीश दत्त राम पांडेय को पराजित कर विधायक चुने गए। वर्ष 1945 में नजरबंदी से छूटने के पश्चात हुए प्रांतीय असेम्बली में पुनः निर्विरोध विधायक चुने गए। महात्मा गांधी के असामयिक निधन के बाद टंडन जी ने गांधी संस्थान की स्थापना कर गांधी पार्क में उन्होंने इटली से विश्व प्रसिद्ध महात्मा गांधी की प्रतिमा का निर्माण कराकर उसे स्थापित कराया।

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