प्रयागराज : चयनितों के आपराधिक इतिहास का आकलन सार्वजनिक रोजगार के लिए नुकसानदेह

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Published By Vinay Shukla
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अमृत विचार, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सार्वजनिक पद पर चयनित उम्मीदवार की उम्मीदवारी निरस्त करने के मामले में कहा कि भारतीय कानून नियोक्ता को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को अपने प्रतिष्ठान से बाहर रखने का अधिकार देता है, लेकिन इसका उद्देश्य कभी भी उन उम्मीदवारों को बाहर करने का नहीं है जो रिश्तेदारों द्वारा पारिवारिक मामलों से जुड़े अभियोजन का शिकार हुए हैं।

सीआरपीसी की धारा 498 के तहत पूरे परिवार के खिलाफ शिकायत दबाव डालने के उद्देश्य से दर्ज की जाती है, जिससे हानिकारक शर्तों पर पीड़ित पक्ष दूसरे पक्ष से समझौता कर ले। अगर किसी भावी उम्मीदवार के आपराधिक इतिहास का आकलन करने के लिए इस प्रकार की शिकायतों पर विचार किया जाता है, तो सार्वजनिक रोजगार के लिए यह बहुत नुकसानदायक होगा। इससे बड़े स्तर पर कई प्रतिभाएं नष्ट हो जाएंगी। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकलपीठ ने बाबा सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट, मिर्जापुर के यंत्रवत व्यवहार पर भी आपत्ति जताते हुए कहा कि चरित्र प्रमाण पत्र को आंख मूंद कर अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

जिला मजिस्ट्रेट जिले का एक जिम्मेदार अधिकारी होता है, जिसे उन सामाजिक विकृतियों के प्रति सचेत रहना चाहिए, जिसके कारण क्रूरता और दहेज की मांग की दुर्भावनापूर्ण शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं, जिसमें लड़के के पूरे परिवार को शामिल कर लिया जाता है। उन्हें ऐसे मामलों को संवेदनशीलता से निपटाना चाहिए और चरित्र प्रमाण पत्र जारी करने के लिए याची के दावे पर उचित रूप से विचार करना चाहिए।  दरअसल मामले के अनुसार याची लघु सिंचाई विभाग में सहायक बोरिंग टेक्नीशियन के पद के लिए चयनित हुआ। उसका चयन रद्द करते हुए आक्षेपित आदेश में कहा गया कि उसके बड़े भाई और भाभी के बीच घरेलू झगड़े को लेकर विवाद था।

जिसके कारण बड़े भाई की पत्नी के पिता ने याची के बड़े भाई और उसके परिवार के सभी सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया था। याची के अधिवक्ता ने आगे बताया कि उक्त कार्यवाही को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसमें कोर्ट ने आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दिया था। अंत में कोर्ट ने मामले को 22 अगस्त के लिए सूचीबद्ध करते हुए जिला मजिस्ट्रेट से इस संबंध में हलफनामा मांगा और पूछा कि उन्होंने किस आधार पर याची के पक्ष में चरित्र प्रमाण पत्र जारी नहीं किया।

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