नौकरी करने वाली पत्नी पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं, हाईकोर्ट ने रद्द किया फैमिली कोर्ट का आदेश

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक कामकाजी महिला के पक्ष में अधीनस्थ अदालत के गुजारा भत्ता आदेश को रद्द करते हुए कहा कि चूंकि महिला आय अर्जित कर रही है और उसके ऊपर कोई अन्य जिम्मेदारी नहीं है, इसलिए वह पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है। 

अंकित साहा द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह ने कहा, “अधीनस्थ अदालत के आदेश पर गौर करने पर पता चलता है कि महिला ने अपने हलफनामा में स्वयं स्वीकार किया है कि वह एक स्नातकोत्तर ‘वेब डिजाइनर’ है और एक कंपनी में ‘सीनियर सेल्स कोऑर्डिनेटर’ के पद पर काम करते हुए प्रति माह 34,000 रुपये कमा रही है।” 

अदालत ने कहा, “लेकिन जिरह के दौरान उसने स्वीकार किया कि वह प्रति माह 36,000 रुपये कमा रही है। एक पत्नी के लिए जिस पर कोई अन्य जिम्मेदारी नहीं है, यह रकम मामूली नहीं कही जा सकती, जबकि अपीलकर्ता पर अपने बूढ़े माता-पिता की देखभाल और अन्य सामाजिक जिम्मेदारियां हैं।” अदालत ने निष्कर्ष दिया कि सीआरपीसी की धारा 125(1)(ए) के तहत, प्रतिवादी अपने पति से गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं है, क्योंकि वह एक कमाऊ महिला है और अपना खर्च स्वयं उठा सकती है। 

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि प्रतिवादी ने अधीनस्थ अदालत में अपनी कमाई का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया और हलफनामा में खुद को बेरोजगार और निरक्षर बताया। उन्होंने बताया कि जब अदालत में पति द्वारा दाखिल दस्तावेज प्रतिवादी को दिखाए गए, तो जिरह के दौरान उसने अपनी आय स्वीकार की। 

अदालत ने तीन दिसंबर को पारित आदेश में कहा, “जो वादी सच का सम्मान नहीं करते और तथ्यों को छिपाने में संलिप्त रहते हैं, उनके मामले अदालत से बाहर फेंक दिए जाने चाहिए। इस प्रकार गौतम बुद्ध नगर की परिवार अदालत द्वारा 17 फरवरी 2024 को पारित आदेश को रद्द किया जाता है और मौजूदा आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार किया जाता।’’ 

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