जल संचय में जनभागीदारी

जल संचय में जनभागीदारी

बढ़ती वैश्विक आबादी, कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ती मांग के कारण पानी की कमी और जल संसाधनों में कमी आई है। इसका पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यानी सतत विकास के लिए पानी आवश्यक है। पानी एक सीमित संसाधन है, जो जीवन के सभी पहलुओं के लिए आवश्यक है। भारत में दुनिया के कुल ताजा पानी का सिर्फ 4 प्रतिशत ही है।

एक बड़े भूभाग को पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है। कई जगहों पर पानी का स्तर लगातार गिर रहा है। जलवायु परिवर्तन इस संकट को और गहरा रहा है। भविष्य की पीढ़ियों के लिए इस बहुमूल्य संसाधन की उपलब्धता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए जीवन के सभी पहलुओं में जल संरक्षण प्रथाओं को अपनाना आवश्यक है। इसलिए जल की कमी और संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता को दुनिया भर में निकट भविष्य की चुनौतियों के रूप में पहचाना जाता है।

सरकार ने टिकाऊ भविष्य के लिए जिन नौ संकल्पों को सामने रखा है, उनमें जल-संरक्षण पहला संकल्प है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को ‘जल संचय जनभागीदारी पहल’ की शुरुआत की और कहा कि जल-संरक्षण केवल नीतियों का नहीं, बल्कि सामाजिक निष्ठा का भी विषय है तथा जागरूकता, जनभागीदारी और जन आंदोलन इसकी सबसे बड़ी ताकत हैं। जल-संरक्षण केवल नीतियों का नहीं, बल्कि सामाजिक निष्ठा का भी विषय है। जागरूक जनमानस, जनभागीदारी और जनआंदोलन ये इस अभियान की सबसे बड़ी ताकत है। 

गौरतलब है कि जल संरक्षण प्रथाओं में कई तरह की गतिविधियां और प्रौद्योगिकियां शामिल हैं जिनका उद्देश्य पानी की खपत को कम करना और पानी की बर्बादी को रोकना है। जल संरक्षण प्रथाओं के कुछ उदाहरणों में कुशल सिंचाई, कम प्रवाह वाले उपकरण और पानी का पुनः उपयोग शामिल हैं। जल संरक्षण भारत सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। देश के कई राज्यों में जल संचयन की पुरातन परंपरा रही है। विशेषकर राजस्थान तो इसका ज्वलंत उदाहरण है। वर्तमान में जल का समुचित प्रबंधन ही हमारी सभ्यता को जीवित रख सकता है।

जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए ऐसी रणनीतियों के संयोजन की आवश्यकता है, जो व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारों को स्थायी जल प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें। जल संरक्षण को बढ़ावा देने की कुछ रणनीतियों में शिक्षा अभियान, मूल्य निर्धारण तंत्र, विनियमन और प्रौद्योगिकी नवाचार शामिल हैं। जलसंकट की त्रासदी का हल खोजने के लिए भारत को दुनिया में सबसे आगे खड़ा होना ही होगा। हमें संकल्प लेना होगा कि जनभागीदारी से भारत को जल संरक्षण की दिशा में पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणा बनाएंगे।