रिजर्व बैंक का तटस्थ रुख

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Mishra
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बीते दिनों भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की बैठक में किसी भी तरह का बदलाव करने से परहेज किया है। ऐसा दसवीं बार हुआ है जब मौद्रिक नीति समिति ने अपने रुख को तटस्थ रखा है और रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भविष्य में दरों में कटौती के लिए जगह बनाई जा सकेगी और महंगाई पर काबू भी पाया जा सकेगा। रिजर्व बैंक ने आगामी दो वित्त वर्षों में महंगाई के चार फीसद से ऊपर रहने का अनुमान लगाया है।

नई मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की पहले की अनुमानित दर को कम किया गया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास मानते हैं कि उच्च ब्याज दरों के कारण विकास दर में कमी के संकेत नहीं हैं, इसलिए भी शीर्ष बैंक कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है। गौरतलब है कि दुनिया में जिस तरह के हालात हैं और बहुत सारे देश मंदी की मार झेल रहे हैं,उसमें भारत की अर्थव्यवस्था ने अपने को संभाल रखा है। यहां मंदी के झटके उस तरह नहीं लगे, जैसे कई विकसित कहे जाने वाले देशों में भी देखने को मिले। 

इस वक्त भारत दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। ऐसे में रिजर्व बैंक ब्याज दरों में किसी भी तरह का परिवर्तन कर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता है। रिजर्व बैंक का मानना है कि अगर महंगाई को चार प्रतिशत से नीचे लाकर स्थिर करने में कामयाबी मिल जाती है तो विकास दर दहाई के आंकड़े को छू सकती है। रिजर्व बैंक के लिए खाने-पीने के सामान में महंगाई चिंता की बात बनी हुई है। हालांकि फरवरी के 8.6 फीसदी से घटकर यह अगस्त में 5.66 फीसदी हो गई है। केंद्रीय बैंक को उम्मीद है कि सितंबर में खाद्य मुद्रास्फीति में उछाल के बावजूद आने वाले महीनों में कीमतों में कमी आएगी, क्योंकि अच्छे मानसून के कारण देश में कृषि उत्पादों की स्थिति बेहतर होगी और खाद्यान्न भंडार भी भरा रहेगा।

जहां तक महंगाई पर काबू पाने का सवाल है, आंकड़ों में जरूर इसे कुछ काबू में दिखाया जाता है, मगर धरातल पर यह लगातार आम आदमी की जेब पर बोझ डाल रही है। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम लोगों की पहुंच से दूर होते जा रहे हैं। त्योहारों का मौसम शुरू हो चुका है। इसी कारण बाजार गुलजार होने लगे हैं, व्यापारियों को अच्छी कमाई की उम्मीद होती है, मगर महंगाई की मार का असर बाजार पर दिखता है। फिर, थोक महंगाई और खुदरा महंगाई के बीच कोई तार्किक अंतर नजर नहीं आता। ऐसे में दरों को यथावत बनाए रखकर रिजर्व बैंक महंगाई को काबू में रखने की अपनी कोशिशों में कितना कामयाब होगा, इसका दावा नहीं किया जा सकता।