लॉ कॉलेज पर हाईकोर्ट ने लगाया 5 लाख का जुर्माना, छात्र को मिलेगा मुआवजा
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नियमों के विरुद्ध विधि महाविद्यालय में प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा में सफल होने के बाद एक छात्र का प्रवेश रद्द करने के मामले में कहा कि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध प्रभा देवी भगवती प्रसाद विधि महाविद्यालय अनंतपुर, हरपुर-बुद्धहाट, गोरखपुर (लॉ कॉलेज) का लापरवाही और जोखिम भरे ढंग से कार्य करना अत्यंत आश्चर्यजनक है।
कोर्ट ने पाया कि जब लॉ कॉलेज द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि अपीलकर्ता ने कोई धोखाधड़ी नहीं की थी और उसने प्रवेश के वक्त सभी प्रासंगिक दस्तावेज प्रस्तुत किए थे, साथ ही लॉ कॉलेज की गलती के कारण उसे प्रवेश मिल गया था तो ऐसी स्थिति में अपीलकर्ता के शैक्षणिक भविष्य को खतरे में डालने के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में 5 लाख रुपए मुआवजे के रूप में दिया जाना उचित है और अत्यधिक नहीं है।
रिट न्यायालय के आदेश को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने अजय कुमार पांडेय को द्वितीय वर्ष की परीक्षा में बैठने की अनुमति देने संबंधी कोई निर्देश जारी नहीं किया। हालांकि लॉ कॉलेज के अधिवक्ता ने 5 लाख रुपए का मुआवजा देने में कॉलेज की असमर्थता बताई, लेकिन कोर्ट ने देखा कि रिट न्यायालय द्वारा 30 हजार रुपए के मुआवजे के आदेश को विश्वविद्यालय द्वारा चुनौती नहीं दी गई, इसलिए कोर्ट ने मामले में लॉ कॉलेज की गलती देखते हुए याची को 5 लाख का मुआवजा देने का निर्देश दिया।
मामले के अनुसार अपीलकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत वर्ष 2019-20 के लिए एलएलबी पाठ्यक्रम के पहले सेमेस्टर की परीक्षा की अपनी उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन हेतु हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने याची को विश्वविद्यालय जाकर उत्तर पुस्तिकाओं के अवलोकन का आदेश दिया। इसके बाद याची को दूसरे वर्ष के लिए मौखिक परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं मिली, जब याची ने फिर से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो विश्वविद्यालय ने बताया कि याची सहित 54 छात्रों का प्रवेश अवैध था, जिसे रद्द कर दिया गया है।
याची ने इस आदेश को एक अंतर-न्यायालय अपील में चुनौती दी, जिसमें अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि विश्वविद्यालय की गलती के लिए छात्र को दंडित नहीं किया जा सकता है।अपीलकर्ता एक मेधावी छात्र है जो अपने पहले सेमेस्टर की परीक्षा में सफल रहा।
याची के अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि प्रवेश विवरणिका में कहा गया था कि उम्मीदवार की स्नातक की डिग्री 2016 या उसके बाद की होनी चाहिए, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि 2008 की डिग्री होने से अपीलकर्ता को एलएलबी पाठ्यक्रम में प्रवेश से वंचित किया जा सकता है। अंत में कोर्ट ने याची का प्रवेश विवरणिका में निर्धारित नियमों के विरुद्ध पाते हुए उसे द्वितीय वर्ष की परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी, लेकिन लॉ कॉलेज की लापरवाही के कारण छात्र को 5 लाख का मुआवजा देने का निर्देश दिया।
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