Bareilly: रॉड्स फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय वेटरिनेरियन बने शुभम नरवाल, ऐसे की तैयारी

Amrit Vichar Network
Published By Vikas Babu
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बरेली, अमृत विचार: भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान (आईवीआरआई) से पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन में स्नातक कर इंटर्नशिप कर रहे शुभम नरवाल को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ब्रिटेन की रोड्स फेलोशिप मिली है। वह अक्टूबर 2025 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जाकर चार साल तक एमएससी क्लिनिकल एम्ब्रियोलॉजी (भ्रूण विज्ञान) की पढ़ाई और पीएचडी करेंगे।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी हर साल विश्व के अलग-अलग देशों के 125 छात्रों को ''रोड्स स्काॅलरशिप'' देती है। भारत के लिए पांच सीटें निर्धारित हैं। इस साल चयनित पांच छात्रों में शुभम पहले वेटरिनेरियन हैं।

मूल रूप से हरियाणा के करनाल के रहने वाले शुभम ने बताया कि वह वर्ष 2019 में आईवीआरआई में बीवीएससी में प्रवेश लेने के बाद से ही इस स्काॅलरशिप के लिए तैयारी में जुट गए थे। स्नातक पूरा होने और इंटर्नशिप के दौरान जून में उन्होंने रोड्स फेलोशिप के लिए ऑनलाइन आवेदन किया।

आवेदन के दौरान एक हजार शब्दों में क्या पसंद और नापसंद है, वह मौजूदा समय में क्या कर रहे हैं और भविष्य में क्या करना चाहते हैं। स्काॅलरशिप के जरिए पढ़ाई पूरी करने के बाद समाज के लिए वह कितना उपयोगी साबित हो सकते हैं। इसके बाद पांच सौ शब्द में अपनी पूरी शैक्षणिक योग्यता और जिस कोर्स के लिए आवेदन कर रहे हैं उसके बारे में जानकारी देनी होती है। वह क्यों उस कोर्स की पढ़ाई करना चाहते हैं और बायोडाटा भी दो पेज में ही होना चाहिए।

शुभम ने बताया कि पहले राउंड का ऑनलाइन इंटरव्यू अक्टूबर में हुआ। भारत के पूर्व रोड्स फेलोशिप पा चुके विषय विशेषज्ञों ने इंटरव्यू लिया। दूसरे राउंड का ऑनलाइन इंटरव्यू अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में हुआ। तीन लोगों के पैनल ने संबंधित विषय, सामान्य ज्ञान, शौक, पर्यावरण, समाज और अन्य क्षेत्रों से जुड़े सवाल-जवाब किया। तीसरा और अंतिम इंटरव्यू ''सोशल एंगेजमेंट'' 8 और 9 नवंबर को दिल्ली में हुआ जिसमें पूर्व फेलोशिप और विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ शामिल थे। 9 नवंबर की शाम को रिजल्ट बता दिया गया। चयन होते ही ऐसा लगा कि आसमान को छूना मुश्किल नहीं है।

साढ़े तीन करोड़ रुपये मिलेंगे
शुभम ने बताया कि एमएससी क्लिनिकल एम्ब्रियोलॉजी की एक साल की मास्टर डिग्री होगी। इसके बाद तीन साल ''वुमन एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ'' पर पीएचडी करेंगे। फेलोशिप के तहत उन्हें आने-जाने की फ्लाइट की टिकट, वीजा और फीस का पूरा खर्च करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये (भारतीय मुद्रा) मिलेंगे।

माता-पिता, भाई, शिक्षकों और साथियों को दिया श्रेय
शुभम ने बताया कि उनके पिता डाॅ. सुभाष चंद नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट करनाल में वेटनरी सर्जन हैं। उन्होंने इंटर तक की शिक्षा करनाल से ही की। उनकी मां सुनीता गृहिणी हैं और बड़े भाई साहिल नरवाल जर्मनी के फ्रेड्रिक्स स्किल यूनिवर्सिटी येन से ''फारेस्ट इकोलाॅजी'' विषय पर पीएचडी कर रहे हैं। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता, भाई, आइवीआरआई के डायरेक्टर डाॅ. त्रिवेणी दत्त, गाइड डाॅ. हरिओम पांडेय, यूयूजी कोआर्डिनेटर डाॅ. रजत गर्ग, डाॅ. आयोन तरफदार, डाॅ. यूके डे, डाॅ. नरेश सौहेलहार, डाॅ. कुमार सेन, डाॅ. जयदीप रोकड़े और बैचमेट को देते हैं।

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