SGPGI: 36 तरह की होती है दिमाग की यह खास बीमारी, यूपी में शुरू हुई जांच
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लखनऊ, अमृत विचार। स्पाइनोसेरेबेलर अटैक्सिया (SCA) एक अनुवांशिक बीमारी है। जो 36 से भी ज्यादा प्रकार की होती है। इस बीमारी में दिमाग का सेरिबैलम हिस्सा सिकुड़ने लगता है। जिससे मरीज अपना दैनिक कार्य भी नहीं कर पाता और वह दूसरे पर पूरी तरह निर्भर हो जाता है। भोजन भी उसे दूसरे के हाथ से करना पड़ता है। इस बीमारी की समय पर सटीक जानकारी होने से इसका इलाज शुरू हो सकता है। जिससे इस बीमारी को दूसरी पीढ़ी में जाने से रोका जा सकता है। इस बीमारी की जानकारी के लिए एसजीपीजीआई में जांच शुरू हो गई है। जिसके जरिये बीमारी के विभिन्न प्रकारों को पहचाना जा सकता है। बीमारी की पहचान के लिए डॉ. अंशिका श्रीवास्तव की अगुवाई में डॉक्टरों की टीम ने शोध किया है। यह जानकारी चिकित्सा आनुवंशिकी विभाग के डॉ.संदीप कुमार सिंह ने दी है।
डॉ.संदीप के मुताबिक स्पाइनोसेरेबेलर अटैक्सिया (SCA) 36 से अधिक प्रकार की होती है, लेकिन उत्तर प्रदेश में अभी तक किसी भी सरकारी चिकित्सा संस्थान में इस बीमारी के जांच की सुविधा नहीं थी। जिससे यह पता चल सके कि मरीज स्पाइनोसेरेबेलर अटैक्सिया के कौन से वंशानुगत मस्तिष्क विकार से पीड़ित है, जांच के लिए नमूने बाहर भेजे जाते थे, लेकिन अब टीपीपीसीआर नाम की तकनीक के जरिये रक्त के नमूने से बीमारी की सटीक जांच संभव है। रक्त की महज एक जांच से स्पाइनोसेरिबेलर अटैक्सिया के प्रकार का पता चल जायेगा और समय पर इलाज शुरू होने से दूसरी पीढ़ी में इस बीमारी को जाने से रोका जा सकता है। डॉ.संदीप के मुताबिक इस बीमारी के संभावित करीब 100 लोगों पर शोध कर किया गया था, जिनकी उम्र 30 से 35 साल के बीच थी।
लक्षण
डॉ.संदीप ने बताया कि मस्तिष्क का एक हिस्सा इस बीमारी में प्रभावित होता है। जिसे सेरिबैलम हिस्सा कहा जाता है। यह वह हिस्सा होता है जो शारीरिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण होता है। बीमारी होने पर मरीज अपना कोई भी दैनिक कार्य नहीं कर पाता, वह भोजन भी नहीं कर पाता, चलने फिरने में भी असमर्थ होता है। हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि इस बीमारी का कोई विशेष इलाज नहीं है, केवल लक्षणों को दूर कर सुधार की दिशा में कार्य किया जाता है, लेकिन इलाज होने का सबसे बड़ा फायदा दूसरी पीढ़ी को मिलता है। इलाज शुरू होने से इस बीमारी को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाने से रोका जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जिसे भी इस तरह के लक्षण महसूस हो उसे एसजीपीजीआई में जांच के लिए आना चाहिए। एसजीपीजीआई में जांच की सुविधा शुरू हो गई है।
शोध करने वाली टीम
डॉ. अंशिका श्रीवास्तव, पूजा, डॉ. संदीप कुमार सिंह, आकांक्षा, प्रताप, सौरभ, सांई, आयुषी
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