Kanpur: फर्टिलाइजर कारखाना संकट पर, यूनियनों के तेवर ढीले, बैठकों में चर्चा नहीं, यूनियन नेता दलों व सरकार की चौखट पर

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Shukla
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विशेष संवाददाता, कानपुर। उद्योगों का शहर कहलाने वाला कानपुर से एक के बाद एक भारी उद्योगों में ताला लगता रहा और दोहरी भूमिका की आरोपी ट्रेड यूनियनें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं। ताजा उदाहरण फर्टिलाइजर कारखाना केएफसी है। अघोषित ताला बंदी का शिकार इस कारखाने को बचाने के लिए यूनियनों में एकजुटता तो दूर, वहां की प्रभावी यूनियन आईईएल इम्पालाईज यूनियन भी निष्क्रिय पड़ी है। कानपुर का ऐतिहासिक ट्रेड यूनियन आंदोलन पूरी तरह से फुस्स हो चुका है। दो हजार सदस्यों वाली आईईएल इम्पलाईज यूनियन में अब कुल 24 सदस्य हैं। 19 जनवरी की सीटू की बैठक में केएफसीएल संकट पर कोई चर्चा तक नहीं हुई।

आईईएल इम्पलाईज यूनियन सीटू (सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन) का हिस्सा है। बीते एक साल से इसका सचिव तक नहीं है। अरविंद कुमार की मृत्यु के बाद यह पद खाली है। दर्शनपुरवा में यूनियन की बैठक में 1982 के दौरान लेबर लॉज को लेकर हुई हड़ताल में मारे गए सात लोगों की बरसी मनायी गयी लेकिन फर्टिलाइजर का संकट चर्चा के काबिल तक नहीं समझा गया। ट्रेड यूनियन, प्रबंधन, श्रम विभाग के बीच जबरदस्त संवादहीनता है। सीटू के जिला सचिव राजीव खरे का कहना है कि वे लोग फर्टिलाइजर को लेकर श्रमायुक्त को ज्ञापन सौपेंगे। 

भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश महामंत्री अनिल उपाध्याय कहते हैं कि उन्होंने 15 जनवरी को श्रमायुक्त से बातचीत की थी। यह तो भुगतान की वजह से गैस आपूर्ति न होने कारखाना बंदी का मामला है। वह क्या कर सकते हैं, यूनियन क्या चाहती है, बताएं तो। अनिल इतनी बात कहकर लौट आए। वह कहते हैं कि एक पत्र भी उन्हें सौंपा था। एटक के जिला सचिव ने ज्ञापन सौंपा था। एटक ने कोई बैठक अब तक तक नहीं की। इंटक का तो जैसे अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। केएफसीएल में तीन-चार यूनियनें हैं पर निष्क्रिय हैं।

एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राजनीतिक दलों का दुमछल्ला बनकर कर्मचारियों के हितों के नाम स्याह सफेद करने वाली ट्रेड यूनियनें कानपुर में अपना स्वर्णिम इतिहास बिसार चुकी हैं। सीटू माकपा से जुड़ी है तो एटक भाकपा और इंटक कांग्रेस से तो भारतीय मजदूर संघ भाजपा से जुड़ी है। ट्रेड यूनियन नेता भी अधिकारियों के साथ बैठना पसंद करते हैं चाहे सरकारी अधिकारी हों या छोटे, बड़े कारखानों के।

कानपुर में आंदोलनों का स्वर्णिम इतिहास

-1955 में सूती मिलों की 80 दिनों की हड़ताल
-केके पांडे एवार्ड के विरोध में रेल रोको आंदोलन
-1989 में तीन दिनों तक ठप्प रहा दिल्ली-हावड़ा रूट
-दादानगर एलएमएल कारखाना का आंदोलन
-फैक्ट्री एरिया चौराहे पर वर्षों लागू रही 144
-जूट मिल कर्मियों के आंदोलन से हिल गया प्रबंधन

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