पाली में छात्रों को दक्ष बना रहे डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल, राज्यपाल ने किया सम्मानित

लखनऊ, अमृत विचारः गणतंत्र दिवस के अवसर पर राज भवन, उत्तर प्रदेश में विशेष अलंकरण समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर साहित्य, संस्कृति, कला एवं खेल के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देने वाली विभूतियों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में राज्यपाल आनन्दी बेन ने केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर की बौद्ध दर्शन एवं पालि विद्याशाखा में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल को ’‘पालि साहित्य संवर्धन सम्मान’’ प्रदान किया गया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के युवा मामले एवं खेल मंत्री गिरीश चन्द्र यादव विशिष्टातिथि के रूप में उपस्थित थे। मुकेश कुमार मेश्राम (प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति) की उपस्थिति में संस्कृति एवं साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वाली विभूतियों को विभिन्न सम्मानों से अलंकृत किया गया।
भारत में पालि के विस्तृत एवं सर्वव्यापी प्रचार-प्रसार एवं संवर्धन के लिए उनके प्रयास आधारभूत नींव की भांति हैं। वे 10 दिवसीय आवासीय पालि सम्भाषण प्रशिक्षण अध्ययनशालाओं के द्वारा लोगों को पालि में प्रशिक्षित एवं दक्ष कर रहे हैं। पालि व्याकरण को सरलतम एवं रोचक ढंग से प्रस्तुत करने हेतु उन्होंने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया है तथा पालि शिक्षण के लिए अनेक सरल पुस्तकों का निर्माण किया है। छोटे बच्चों में नैतिक शिक्षा एवं शील-सदाचार की भावना को संरोपित करने के लिए उन्होंने विद्यालयीय पाठ्यक्रम के तौर पर 'के.जी.-वन से लेकर कक्षा-आठवीं' तक की रोचक, आकर्षक एवं मनोरंजक पुस्तकों का निर्माण करके पालि के क्षेत्र में एक उत्कृष्ट कार्य किया है। पालि-भाषा के माध्यम से आप मौलिक साहित्य का प्रणयन भी कर रहे हैं। वर्ष 2019 में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा ‘पालि-वाक्यावली’ नाम की पुस्तक के लिए प्रफुल्ल को ‘श्रमण-पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया है।
तकनीकी के माध्यम से पालि-शिक्षण हेतु डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल ने ‘डिजीटल प्लेटफॉर्म’ भी तैयार किया है, जिससे हजारों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। वेबसाइट पर पालि के टूल्स को प्रयोग किया जा सकता है। भारत में जहां आज इस क्षेत्र में कोई विशेष कार्य नहीं हो रहा है, ऐसे में डॉ. गड़पाल ने बौद्ध संस्कृत साहित्य के अनेक ग्रन्थों का हिन्दी में अनुवाद करके भारत की प्राचीन विरासत तथा ज्ञान-परम्परा से लोगों को परिचित कराने का कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा डॉ. प्रफूल्ल ने मराठी भाषा से संस्कृत तथा हिन्दी भाषा में भी कुछ पुस्तकों का अनुवाद किया है। 40 से अधिक ग्रन्थों की रचना, सम्पादन तथा अनुवाद भी किया है।
40 राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में आपने विद्वत्तापूर्ण शोधपत्र प्रस्तुत किए हैं। 20 शैक्षिक-कार्यशालाओं में सोत्साह भागग्रहण किया। विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं तथा जर्नल्स् में आपके 45 से अधिक शोधपत्र और आलेख प्रकाशित हो चुके हैं।
इस अवसर में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा तथा सह निदेशक प्रो. गुरु चरण सिंह नेगी ने विशेष मंगलकामनाएं प्रकट की। प्रो. राम नन्दन सिंह, प्रो. भारत भूषण त्रिपाठी, प्रो. धनीन्द्र कुमार झा, प्रो. ग़ज़ाला अंसारी, प्रो. पवन कुमार दीक्षित, प्रो. लोकमान्य मिश्र, प्रो. अवनीश अग्रवाल, प्रो. देवी प्रसाद द्विवेदी, प्रो. गणेश शंकर विद्यार्थी, प्रो. एस.पी. सिंह, डाॅ. कविता बिसारिया, डॉ. कृष्णा कुमारी आदि परिसरीय प्राध्यापकों ने इस अवसर पर उन्हें बधाइयां दी।
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