खेलभूमि के रूप में उत्तराखंड का स्वर्णिम युग
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अमित शर्मा, देहरादून
अमृत विचार: देवभूमि.. वीरभूमि... और अब खेलभूमि के रूप में उत्तराखंड की नई पहचान बन रही है। यूं भी कह सकते हैं कि खेल भूमि के रूप में इस पर्वतीय राज्य के स्वर्णिम युग का उदय हो चुका है। कई खेल तो ऐसे हैं जिनमें स्थानीय खिलाड़ियों ने पहली बार में गोल्ड को लक्ष्य बनाया लेकिन सिल्वर पाकर भी प्रदेश में इतिहास रच दिया।
पहले बात आधारभूत ढांचे की। रजत जयंती वर्ष में प्रवेश कर चुके उत्तराखंड को इस बार 38 वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है। यह इस राज्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि के साथ बड़ी चुनौती भी है। राष्ट्रीय खेलों का भव्य उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 जनवरी को देहरादून के राजीव गांधी इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में भव्य तरीके से किया जबकि 14 फरवरी को हल्द्वानी के गौलापार अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम में इसका दिव्य समापन होगा।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ही राज्य में नई खेल नीति लाए। जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद फिर से उत्तराखंड में हो रहे किसी आयोजन पर देश दुनिया की नजर है। वर्तमान स्थिति यह है कि खिलाड़ियों के लिए गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों में खेल अवस्थापना सुविधाओं का राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफार्म विकसित हो चुका है। हालांकि यह भविष्य का प्रश्न है कि राष्ट्रीय खेलों के समापन के बाद यह बुनियादी ढांचा कब तक अस्तित्व में रहता है।
इन खेलों का बुनियादी ढांचा
तीरंदाजी, वेटलिफ्टिंग, एथलेटिक्स, वुशु, ताइक्वांडो, लॉन बॉल, अंतरराष्ट्रीय स्तर की शूटिंग रेंज, बैडमिंटन, हॉकी, वाटर स्पोर्ट्स, साइकिलिंग ट्रैक, शूटिंग ट्रैप एंड स्कीट, फुटबॉल में तो स्थानीय खिलाड़ी पहली बार फाइनल में पहुंचे लेकिन गोल्ड से वंचित रह गए, स्विमिंग,
मॉडर्न पेंटाथलॉन और योगासन।