एसजीपीजीआई: दिल की गंभीर बीमारी से ग्रसित युवती को दिया नया जीवन, ब्रेन स्ट्रोक ने कर दी थी हालत नाजुक

Amrit Vichar Network
Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के चिकित्सकों ने दिल की गंभीर बीमारी से जूझ रही गोरखपुर की युवती की जान बचाने में कामयाबी हासिल की है। युवती में खून के थक्के बनने की वजह से पैर काटने की स्थिति बन गई थी। इलाज के दौरान ब्रेन स्ट्रोक ने स्थिति और नाजुक कर दी, लेकिन चिकित्सकों के प्रयास से उसकी जान बच गई है। स्वस्थ होने के बाद उसे छुट्टी दे दी गई।

संस्थान में रेडियोडायग्नोसिस विभाग की प्रमुख प्रोफेसर डॉ. अर्चना गुप्ता ने बताया कि गोरखपुर निवासी 29 वर्षीय युवती को गंभीर हालत में पीजीआई में भर्ती कराया गया था। वह रूमेटिक हृदय रोग (आरएचडी) से पीड़ित थी। इसकी वजह से उसे एक्यूट लिम्ब इस्केमिया हुआ था। इस बीमारी में दोनों पैरों में दर्द और ठंड लग रही थी। हृदय में थक्के बनने की वजह से हालत नाजुक थी। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए निचले अंगों में रक्त प्रवाह को बहाल करने के लिए आपातकालीन एंडोवैस्कुलर प्रक्रिया करने का फैसला किया गया।

ये आई जटिलता

प्रोफेसर डॉ. अर्चना गुप्ता के मुताबिक एंडोवैस्कुलर प्रक्रिया में मामूली कट लगाकर थक्के को हटा दिया जाता है। प्रक्रिया शुरू करते ही अचानक उसे न्यूरोलॉजिकल समस्याएं होने लगीं, जिसमें दाईं ओर कमजोरी और बोलने में कठिनाई शामिल थी। जांच करने पर पता चला कि हृदय के थक्के अब बाईं ओर की प्रमुख मस्तिष्क धमनियों में चले गए हैं। इसकी वजह से उसके शरीर का दाहिना हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। तुरंत मस्तिष्क की एमआरआई की गई, जिसमें पता चला कि बाएं मध्य मस्तिष्क धमनी (एमसीए) में तीव्र अवरोध है। इसको देखते हुए मस्तिष्क से थक्का हटाने के लिए यांत्रिक थ्रोम्बेक्टोमी करने का फैसला किया गया। इसमें कमर में एक छोटे से निशान के माध्यम से, एक माइक्रोकैथेटर और माइक्रोवायर का उपयोग करके थक्के को पार किया गया। यह प्रक्रिया सफल रही और कुछ घंटों में न्यूरोलॉजिकल सुधार दिखाई देने लगे। उसके अंगों का संचार स्थिर रहा और उसके स्ट्रोक के लक्षण धीरे-धीरे ठीक हो गए। धीरे-धीरे वह अपनी दैनिक गतिविधियां और सामान्य बातचीत करने लगी। स्वस्थ होने पर उसे छुट्टी दे दी गई।

इनकी रही अहम भूमिका

युवती को ठीक करने में कार्डियोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अंकित साहू, इंटरवेंशन रेडियोलॉजिस्ट प्रोफेसर रजनीकांत आर यादव, डॉ. प्रांजल, एनेस्थीसिया टीम- डॉ. प्रोफेसर देवेंद्र गुप्ता और डॉ. तपस कुमार सिंह और रेडियोडायग्नोसिस विभाग की प्रमुख डॉ. प्रोफेसर अर्चना गुप्ता का विशेष योगदान रहा। सफलता मिलने पर सभी ने खुशी जाहिर की।

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