'एक राष्ट्र-एक चुनाव विकसित भारत के लिए जरूरी': Kanpur के सीएसजेएमयू में यूथ पार्लियामेंट में वक्ताओं ने रखे विचार

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Published By Deepak Shukla
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कानपुर, अमृत विचार। सीएसजेएमयू के तात्याटोपे सभागार में यूथ पार्लियामेंट का कार्यक्रम हुआ, जिसमें एक राष्ट्र – एक चुनाव विषय पर युवाओं को संबोधित किया गया। एक राष्ट्र-एक चुनाव को विकसित भारत के लिए उपयोगी बताया गया। कहा गया कि आजादी के बाद हम एक देश एक चुनाव की व्यवस्था के साथ ही चले थे, इसलिए यह तो तय है कि इसे नई व्यवस्था या अवधारणा नहीं कहा जा सकता है।

यूथ पार्लियामेंट के मुताबिक वर्ष 1952 में हुए पहले आम चुनाव से लेकर वर्ष 1967 में तीसरे चुनाव तक एक देश एक चुनाव की व्यवस्था का ही पालन किया गया। एक देश एक चुनाव के विरोधी जनसंख्या में हुई वृद्धि का हवाला देते हुए यह तर्क दे रहे हैं कि इतनी आबादी होने के चलते पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराना संभव नहीं है। लेकिन विरोधी यह नहीं जानते कि अगर आबादी बढ़ी है तो संसाधन और तकनीकों का भी विकास हुआ है। 

पदाधिकारियों ने बताया कि देश में चुनावों की मौजूदा स्थिति सभी जानते हैं कि अपना देश लगभग पूरे साल चुनावी मोड में रहता है, लोकसभा के चुनाव निपटे नहीं कि सियासी दल, चुनाव आयोग और सरकार किसी न किसी राज्य के विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुट जाते हैं, यह चुनाव निपटे तो किसी और एक या एक से अधिक राज्यों के चुनाव सिर पर आ जाते हैं। 

एक लाख करोड़ रुपये खर्च 

एक अनुमान के मुताबिक पिछले लोकसभा चुनाव को सम्पन्न कराने में लगभग एक लाख करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इसी तरह देश की सभी विधानसभाओं के अलग-अलग चुनाव कराने में लगभग 80 हजार करोड़ का बोझ सरकारी खजाने पर पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगरसभी चुनाव एक साथ कराए जाएं तो यह खर्च लगभग आधा हो सकता है। 

आचार संहिता से विकास कार्य होते प्रभावित 

यूथ पार्लियामेंट के मुताबिक बार-बार आचार संहिता लागू होने के कारण विकास कार्य भी बाधित होते हैं। चुनाव के पहले से बाद तक कई दिनों तक आचार संहिता से कोई काम नहीं हो पाता। जनसुविधाओं से जुड़े कार्यों में सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। इसके अलावा सुरक्षा बल अपने मूल और आवश्यक कार्यों व दायित्वों पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते। वह चुनाव कराने में ही व्यस्त रहते हैं। यही दशा प्रशासनिक अमले की भी होती है।

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