साइलेंट किलर इंटरस्टीशियल लंग डिजीज को न करें नजरअंदाज, जानें कैसे बना रही लोगों को शिकार, SGPGI में विशेषज्ञों ने किया अलर्ट 

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Published By Muskan Dixit
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लखनऊ, अमृत विचार: इंटरस्टीशियल लंग डिजीज (आईएलडी) फेफड़ों से जुड़ी एक गंभीर और जटिल बीमारी है। इस बीमारी में फेफड़ों के ऊतक प्रभावित होते हैं, ऐसे में सांस लेने में दिक्कत, खांसी और थकान जैसी समस्याएं होने लगती हैं। आईएलडी एक ‘साइलेंट किलर’ की तरह काम कर सकती है, इसलिए इसे बिल्कुल भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। अगर इसकी जल्दी पहचान हो जाए और समुचित प्रबंधन मिल जाए तो मरीजों को अच्छी जिंदगी दी जा सकती है। लेकिन इसके लिए ऐसे जागरूकता होना बेहद जरूरी है, शुरुआती पहचान और समुचित इलाज ही एकमात्र बचाव का रास्ता है। यह जानकारी संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में आईएलडी पर आयोजित कार्यशाला के दौरान पल्मोनरी विभाग की विशेषज्ञ डॉ. मानसी गुप्ता ने दी।

कार्यशाला में देशभर के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और नवीनतम जांच विधियों और इलाज के तरीकों की जानकारी दी गई। विशेषज्ञों ने बताया कि आईएलडी की शुरुआत आम खांसी-जुकाम जैसी लग सकती है, लेकिन यह धीरे-धीरे गंभीर रूप ले लेती है। हर व्यक्ति का स्वास्थ्य उसका अधिकार है और सांस लेना उसमें सबसे बुनियादी जरूरत है। परिवार में किसी को लंबे समय से खांसी या सांस की समस्या हो रही है, तो बिना देरी किए पल्मोनरी विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। विशेषज्ञों ने बताया कि आईएलडी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन आम लोगों और प्राथमिक चिकित्सकों में इसके प्रति जागरूकता अभी भी सीमित है। इस मौके पर केजीएमयू के पल्मोनरी विभाग के डॉ राजेन्द्र प्रसाद, केजीएमयू के डॉ सूर्यकांत और डॉ. बीपी सिंह ने अपने अपने अनुभव साझा किया। कार्यक्रम का उद्घाटन संस्थान के निदेशक प्रो आरके धीमन ने किया।

क्या है इंटरस्टीशियल लंग डिजीज

पीजीआई में पल्मोनरी विभाग के प्रमुख प्रो आलोक नाथ ने बताया कि आईएलडी कई बीमारियों का एक समूह है। इस बीमारी में फेफड़ों के भीतरी हिस्से यानी इंटरस्टीशियम में सूजन और रेशेदार ऊतक (फाइब्रोसिस) बनने लगता है। इससे ऑक्सीजन का आदान-प्रदान प्रभावित होता है और मरीज को सांस की गंभीर तकलीफ हो सकती है। सही समय पर फेफड़ों की जांच, सीटी स्कैन, पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट जैसे उपाय ज़रूरी है। विशेषज्ञों ने बताया कि स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन स्टेरॉयड, एंटी-फाइब्रोसिस दवाएं, ऑक्सीजन थेरेपी और नियमित मॉनिटरिंग से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

मुख्य लक्षण

-लगातार सूखी खांसी
-सांस लेने में तकलीफ
-थकान और वजन में कमी

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