कानपुर में मोहन भागवत बोले- बाबा साहब ने कहा था, वह संघ को अपनत्व के भाव से देखते...

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Published By Nitesh Mishra
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कानपुर, अमृत विचार। सरसंघचालक मोहन भागवत ने सोमवार को यहां कहा कि हिंदू समाज में एकता-समानता बनाने के लिये डॉ. बाबा साहब भीमराव आंबेडकर और डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने अपना पूरा जीवन खपा दिया। काम दोनों का एक ही था। मगर दोनों ने प्रारम्भ अलग-अलग अवस्था में अलग-अलग दिशा से किया था। 

भागवत ने कहा कि जब 1934 में महाराष्ट्र में सतारा के पास कराड़ की शाखा में डॉ. आंबेडकर गये थे तो उसका समाचार छपा था। केसरी समाचार पत्र में डॉक्टर बाबा साहब आंबेडकर का शाखा पर जो भाषण हुआ उसका तीन पंक्तियों में वृतांत दिया गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि कुछ बातों में हमारे में मतभेद हैं तो भी मैं संघ को अपनत्व के भाव से देखता हूं। 

भागवत ने कहा कि यह अपनत्व दो बातों का परिणाम था। डॉ. हेडगेवार और डॉक्टर आंबेडकर दोनों में अपने समाज के लिए कूट-कूट कर अपार आत्मीयता भरी थी। दोनों का जो कार्य था वह समाज में उसी आत्मीयता को उत्पन्न कर सब स्वार्थ और भेदों को तिलांजलि देने का काम था। उस काम के लिए दोनों चले। सब कार्यकर्ता चले। आज भी हम चल रहे हैं। 

स्वतंत्रता और समता एक साथ लानी है तो बंधुभाव होना जरूरी है। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने कठिन परिस्थिति में अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने भी बाबा साहब की तरह समाज में फैली विषमता को दूर कर एक सूत्र में पिरोने का काम किया। अपने लिये दोनों ही डॉक्टरों ने कुछ नहीं किया। 

बाबा साहब के जाने के बाद उनकी स्मृतियां पुस्तकालय था और डॉ. हेडगेवार के जाने के बाद उनकी स्मृतियां उनका पत्राचार था। दोनों ने ही अपने समाज के लिये कार्य किया और उनकी स्वतंत्रता बनी रहे इसके लिये अपना जीवन खपा दिया। उन्होंने कहा कि यह बड़ा संयोग है कि बाबा साहेब के जन्मदिवस पर ही यह कार्यक्रम हो रहा है। 

संघ और बाबा साहब का कार्य स्टार्टर जैसा

भागवत ने कहा, बाबा साहब का काम था कि समाज से जणमूल से विषमता से हटाना। उन्होंने कहा कि जैसे संघ एक स्टार्टर है। वैसे बाबा साहब का कार्य भी स्टार्टर था। बाबा साहब का स्टार्टर किक वाला स्टार्टर था क्योंकि हिंदू समाज सुन नहीं रहा था। उन्होंने इस कार्य में अपना पूरा जीवन लगा दिया। 

उनका मानना था कि भारत देश को अच्छा बनना है तो विषमता, असमानता और एक दूसरे के प्रति प्रेम की कमी को भरने का प्रयास करना जरूरी है। संघ का कार्य भी जिन्होंने ने शुरू किया उनको सामाजिक विषमता का शिकार तो नहीं होना पड़ा लेकिन डायरेक्ट उपेक्षा का शिकार वह भी होते रहे। 

जरूरत और मानक के अनुसार बना संघ कार्यालय

मोहन भागवत ने कहा कि इस प्रांत को जितनी जरूरत थी, उतना बड़ा कार्यालय बना है। संघ के मानक हैं। जहां जितनी जरूरत उनका ही निर्माण होता है। आवश्यकता से ज्यादा कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि इतना भी बनाने की स्थिति नहीं थी। जब डॉ. हेडगेवार अकेले चले थे तो संघ की बैठक घरों में होती थी। कभी कार्यालय इतने छोटे थे कि दिखते तक नहीं थे। उन्होंने कहा कि संघ और कार्यालय एक भाव है इसे संभालकर रखना जरूरी है।

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