Menstrual Hygiene Day : 21% लड़कियां नहीं करती सैनेटरी उत्पाद का इस्तेमाल, संकोच कर रही महिलाएं, सर्वेक्षण में आया सामने
लखनऊ, अमृत विचार : किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग क्वीनमेरी अस्पताल की ओर से ग्रामीण एवं शहरी किशोरियों एवं युवतियों पर किए गए सर्वे में माहवारी स्वच्छता को लेकर दिलचस्प व चिंताजनक दोनों प्रकार के पहलू सामने आए हैं। रिपोर्ट दर्शाती है कि जहां एक ओर जागरुकता बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर सुविधाओं की कमी, सामाजिक व सांस्कृतिक रुकावटें और गलत धारणाएं अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई हैं।
यह सर्वे क्वीन मेरी अस्पताल की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ एवं सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर एडोलसेंट हेल्थ की नोडल डॉ. सुजाता देव व काउंसलर सौम्या सिंह के दिशा निर्देशन में हुआ।
डॉ. सुजाता के मुताबिक सर्वे में सामने आया कि ग्रामीण क्षेत्र की किशोरियां अब मेंस्ट्रुअल कप जैसे पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों के बारे में जान रही हैं। यह बदलाव उम्मीद की किरण दिखाता है। इसके अलावा सैनिटरी पैड्स में प्लास्टिक व रसायन होते हैं। इन्हें जलाने से निकलने वाला धुआं न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, बल्कि सांस की बीमारियों का कारण भी बन सकता है।
सर्वे में सहायक विशेषज्ञ डॉ. प्रतिभा कुमारी ने बताया कि माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसे अशुद्ध मानना एक सामाजिक भ्रांति है, जिसे बदलने की जरूरत है। माहवारी स्वच्छता को लेकर सही जानकारी लोगों तक पहुंचाना बहुत जरूरी है क्योंकि स्वच्छता के अभाव में कई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं |
सर्वे के आधार पर रिपोर्ट
-47.5 प्रतिशत किशोरियों को पहली माहवारी से पहले इसकी जानकारी थी, जबकि 52.5 प्रतिशत को कोई जानकारी नहीं थी।
उपयोग में आने वाले उत्पाद
73 प्रतिशत किशोरियां डिस्पोजेबल सैनिटरी पैड का उपयोग करती हैं। 21.5 प्रतिशत लड़कियां व युवतियां कपड़े के पैड का इस्तेमाल करती हैं। सिर्फ 5.5 प्रतिशत ही मेंस्ट्रुअल कप का प्रयोग करती हैं।
स्वास्थ्य समस्याएं
53% को रैशेज, खुजली और दाने की शिकायतें होती हैं, जिनमें से 37.5 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र से हैं।
सुविधाओं की कमी
44.5 प्रतिशत के पास इस्तेमाल किए गए पैड के निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं है।
-49.5 प्रतिशत को ही साफ व निजी शौचालय उपलब्ध हैं।
सांस्कृतिक पाबंदियां
59.5प्रतिशत किशोरियां माहवारी के दौरान सामाजिक व धार्मिक प्रतिबंधों का सामना करती हैं।
उन्हें रसोई, पूजा या सामाजिक कार्यक्रमों से दूर रखा जाता है।
शारीरिक स्वच्छता
65.5 प्रतिशत किशोरियां हर बार पैड बदलते समय जननांगों की सफाई करती हैं।
9 प्रतिशत किशोरियां इसे कभी साफ नहीं करतीं।
57.5 प्रतिशत केवल पानी का उपयोग करती हैं, 28 प्रतिशत एंटीसेप्टिक और 14.5 प्रतिशत साबुन-पानी का।
उत्पादों की उपलब्धता व खर्च
73 प्रतिशत के लिए सैनिटरी उत्पाद उपलब्ध और सस्ते हैं, जबकि 27 प्रतिशत को अब भी खरीदने में कठिनाई होती है।
उत्पाद निस्तारण के तरीके
72% पैड को कागज में लपेटकर फेंकती हैं।
8.5 प्रतिशत इन्हें जला देती हैं, 14.5 प्रतिशत ज़मीन में गाड़ती हैं और 5 प्रतिशत स्कूल शौचालय में फ्लश कर देती हैं।
माहवारी पर संवाद: 74 प्रतिशत किशोरियां माहवारी पर खुलकर बात करती हैं, जबकि 19.5 प्रतिशत इसे शर्म और संकोच से छुपा लेती हैं।
पीरियड्स और शिक्षा/कार्य
59 प्रतिशत किशोरियां माहवारी के दौरान स्कूल या कार्यस्थल नहीं जातीं।
स्वच्छ व निजी टॉयलेट की अनुपलब्धता इसके पीछे बड़ी वजह है।
सुझाव
1-माहवारी शिक्षा अनिवार्य हो, स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए ताकि हर लड़की को वैज्ञानिक जानकारी मिले।
2 उपलब्धता व सुलभता: सस्ते व टिकाऊ उत्पादों (जैसे मेंस्ट्रुअल कप) के प्रचार हेतु जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
3-साफ-सुथरे टॉयलेट और डिस्पोजल सुविधाएं: स्कूल, कार्यालय व सार्वजनिक स्थलों पर स्वच्छ शौचालय, पानी, डस्टबिन और इंसिनरेटर अनिवार्य हों।
4-सांस्कृतिक धारणाओं पर वार: समुदायों में संवाद और वर्कशॉप हों, जिससे शर्म व संकोच की जगह वैज्ञानिक सोच स्थापित हो।
5-गरीबों को सहायता: गरीब महिलाओं को मुफ्त या रियायती सैनिटरी उत्पाद उपलब्ध कराए जाएं।
6-पर्यावरण के अनुकूल निस्तारण: उपयोग किए गए उत्पादों के लिए बायोडिग्रेडेबल विकल्प और सुरक्षित निस्तारण पर बल दिया जाए।
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