प्रयागराज : कोर्ट पर पक्षपात का आरोप लगाने वाले अधिवक्ता के खिलाफ अवमानना कार्यवाही के निर्देश
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अधिवक्ता के खिलाफ अदालत की रजिस्ट्री को अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का आदेश देते हुए कहा कि वह एक सप्ताह के भीतर न्यायालय की अवमानना अधिनियम की धारा 15 के अनुसार अधिवक्ता के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए इस मामले का रिकॉर्ड उपयुक्त अदालत के समक्ष रखे। क्योंकि उसने जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान एक न्यायाधीश को पक्षपाती और बेईमान कहा था।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकलपीठ ने अधिवक्ता हरीश चंद्र शुक्ला के खिलाफ अवमानना कार्यवाही के निर्देश देते हुए पारित किया, साथ ही उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को अधिवक्ता के आचरण पर विचार करने और यह तय करने का भी निर्देश दिया कि क्या यह अधिवक्ताओं के लिए निर्धारित आचरण के अनुरूप है। मामले के अनुसार अधिवक्ता शुक्ला एक हत्या के मामले में आरोपी की जमानत याचिका में शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। 16 मई को उन्होंने आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा दी गई दलीलों का जवाब देने के लिए कानूनी और संवैधानिक प्रस्तुतियाँ देने के लिए स्थगन की माँग की। कोर्ट ने अनुरोध को अस्वीकार करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता के अनुरोध पर मामले में पहले ही कई स्थगन दिए जा चुके हैं।
अधिवक्ता ने एक दिन बाद दाखिल अपनी लिखित प्रस्तुतियों में उन्होंने न्यायालय पर पक्षपात का आरोप लगाया। अधिवक्ता ने आरोप लगाया कि न्यायालय का पूरा दृष्टिकोण पक्षपातपूर्ण और ईमानदार नहीं था, जिसमें माननीय न्यायाधीश भी शामिल हैं, इस मामले में अभी भी ईमानदार नहीं है और पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है। कोर्ट ने अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त लिखित प्रस्तुतियों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अधिवक्ता ने अपने तर्कों के समर्थन में कोई विशिष्ट उत्तर नहीं दिया है बल्कि उन्होंने न्यायालय पर ही आरोप लगाया कि अदालत पक्षपाती और बेईमान है।
ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें न्यायालय पर भरोसा नहीं है। कोर्ट ने अधिवक्ता के मामले पर विचार करते हुए पाया कि वर्तमान जमानत याचिका अप्रैल 2024 से लंबित है। शिकायतकर्ता ने पहले एक अन्य वकील को नियुक्त किया था, जिसने एक साल से अधिक समय तक याचिका पर सुनवाई टाल दी। अंत में कोर्ट ने मामले को अवमानना कार्यवाही पर विचार करने वाली उपयुक्त खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश देने के साथ खुद को मामले की सुनवाई से अलग कर लिया।
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