High Court : अधिकारियों में न्यायिक आदेशों का उल्लंघन करने की संस्कृति विकसित होना चिंताजनक

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोर्ट के अंतरिम स्थगन आदेश का उल्लंघन करते हुए एक महिला के खिलाफ कथित ध्वस्तीकरण की कार्यवाही करने वाले बागपत जिले के कलेक्टर, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट और तहसीलदार को फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य के कार्यकारी अधिकारियों विशेषकर पुलिस और नागरिक प्रशासन के अधिकारियों के बीच न्यायिक आदेशों का उल्लंघन करने की एक संस्कृति विकसित होती जा रही है।

ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के कार्यकारी अधिकारी न्यायिक निर्देशों का उल्लंघन करने में गौरव महसूस करते हैं और न्यायिक आदेशों का उल्लंघन करने पर उन्हें अपराधबोध होने के बजाय उपलब्धि का एहसास होता है। वर्तमान मामले में अधिकारियों द्वारा बरती गई लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने 7 जुलाई 2025 तक सभी को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया है कि कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए ध्वस्त की गई इमारत को सरकारी लागत पर पुनर्निर्माण और उसके मूल स्वरूप में बहाल करने का आदेश क्यों न दिया जाए। उक्त आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकलपीठ ने  छामा द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। 

दरअसल याची का दावा है कि गत 15 मई 2025 को उन्हें हाईकोर्ट से अंतरिम निषेधाज्ञा प्राप्त हुई थी, जिसमें उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 67 के तहत उनके खिलाफ शुरू की गई बेदखली और ध्वस्तीकरण की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी, साथ ही 5 जुलाई 2024 को पारित विध्वंस आदेश के अनुसार किसी भी वसूली पर भी रोक लगा दी गई थी, लेकिन 16 मई 2025 को एसडीएम, तहसीलदार और पुलिस की सहायता से राजस्व अधिकारियों के एक टीम ने एक दिन पहले पारित कोर्ट के आदेश की एक प्रति दिखाए जाने के बावजूद याची के घर को ध्वस्त कर दिया। 

याचिका में संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत अवनीश त्रिपाठी उप-विभागीय मजिस्ट्रेट बागपत, अभिषेक कुमार तहसीलदार बागपत, दीपक शर्मा राजस्व निरीक्षक और मोहित तोमर लेखपाल द्वारा हाईकोर्ट के आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करने पर उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग की गई है। याचिका के साथ कुछ तस्वीरें भी संलग्न की गई है, जिससे यह स्पष्ट है कि जब विध्वंस की कार्यवाही की जा रही थी, तो अधिकारी कोर्ट का आदेश पढ़ रहे थे। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि भले ही आदेश अपलोड होने में देरी हुई हो, लेकिन जब याची ने स्थगन आदेश पारित होने का दावा किया, तो अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे विध्वंस जैसी कठोर कार्रवाई से बचते और स्थगन आदेश पारित किए जाने की पुष्टि होने तक विध्वंस कार्यवाही को स्थगित करते। अंत में कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान मामले में ध्वस्तीकरण की कार्यवाही कोर्ट के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करके की गई थी, जो अमान्य है। ऐसी त्रुटिपूर्ण कार्यवाही को सुधारने के लिए प्रतिपूर्ति का आदेश पारित करना उचित होगा, जिसके लिए राज्य को पुनर्निर्माण कराने की आवश्यकता होगी। अतः कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर मामले की आगामी सुनवाई यानी 7 जुलाई 2025 को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

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