"सरकार का कोई धर्म नहीं होता", बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

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Published By Vinay Shukla
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हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब, 6 अगस्त को अगली सुनवाई

प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 को लेकर मंगलवार को राज्य सरकार की कड़ी मौखिक आलोचना करते हुए कहा कि राज्य सरकार को धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह अध्यादेश मथुरा, वृंदावन स्थित ऐतिहासिक श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन के लिए एक वैधानिक ट्रस्ट गठित करने से संबंधित है। सरकार का कोई धर्म नहीं होता। फिर आप धर्म के अंदर क्यों जा रहे हैं? आप मंदिर के प्रशासन की योजना बना सकते हैं, लेकिन आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकलपीठ ने की। 

कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि राज्य सरकार तिरुपति और वैष्णो देवी जैसे मंदिरों का प्रबंधन तो करती है, लेकिन किसी मस्जिद या चर्च के प्रबंधन के लिए आगे क्यों नहीं आती। कोर्ट ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि धार्मिक मामलों में राज्य की यह भूमिका संविधान के अनुरूप नहीं है। कोर्ट ने मंदिर के वर्तमान गोस्वामी प्रबंधन पर भी तीखा रुख अपनाते हुए कहा कि वे केवल पैसे के पीछे हैं, उन्होंने मंदिर की पवित्रता नष्ट कर दी है। उन्हें हिंदू धर्म की सही समझ नहीं है। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि मंदिर में चढ़ाए गए धन का सदुपयोग नहीं हो रहा और देवता तक वह धन नहीं पहुंच रहा है। इस ‘लूट’ को रोकने की आवश्यकता है।

जब गोस्वामी पक्ष ने कोर्ट से राज्य के हस्तक्षेप पर रोक लगाने की अपील की, तो कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि आपका (गोस्वामी पक्ष का) प्रवेश भी सीमित किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी माना कि प्रदेश सरकार ने पिछली सुनवाई में न्यायालय द्वारा पूछे गए विशिष्ट सवालों का उत्तर अब तक नहीं दिया है। अतः कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई आगामी 6 अगस्त को सुनिश्चित कर दी है। गौरतलब है कि प्रस्तावित अध्यादेश के तहत मंदिर का प्रबंधन श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास के हाथ में होगा, जिसमें 11 सदस्यीय ट्रस्ट का गठन किया जाएगा। इसमें अधिकतम 7 पदेन सदस्य हो सकते हैं और सभी ट्रस्टी सनातन धर्म के अनुयायी होंगे। यह मामला न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमित्र की उस रिपोर्ट के बाद उठा है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा इस अध्यादेश को लाने की संवैधानिक वैधता पर गंभीर सवाल उठाए गए थे।

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