17 साल की रेप पीड़िता को 31 हफ्ते में अबॉर्शन की इजाजत : HC ने कहा-प्रजनन का हक महिला का निजी अधिकार

Amrit Vichar Network
Published By Vinay Shukla
On

प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में साढ़े 17 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को 31 सप्ताह की गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति देते हुए स्पष्ट किया कि गर्भवती महिला की इच्छा, गरिमा और प्रजनन स्वायत्तता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित मौलिक अधिकार है और ये किसी भी चिकित्सा जोखिम से ऊपर है।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि परामर्श और जागरूकता के बावजूद जब पीड़िता और उसके माता-पिता गर्भावस्था को आगे बढ़ाने के लिए सहमत नहीं हुए, तो उनके निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिए। सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि इस चरण में गर्भपात माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए जानलेवा हो सकता है।

मामले पर विचार करते हुए कोर्ट ने माना कि पीड़िता के मानसिक और शारीरिक हालातों के साथ-साथ दुष्कर्म और सामाजिक कलंक के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसा प्रतीत होता है कि यह निर्णय सामाजिक अपयश और अत्यधिक गरीबी के डर के कारण, साथ ही उस अपराध की गंभीरता के कारण लिया गया है, जिसने याची को भीतर तक तोड़ दिया है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एक महिला को यह तय करने का अधिकार है कि वह गर्भावस्था जारी रखना चाहती है या नहीं।

यह अधिकार उसकी निजता, गरिमा और शारीरिक स्वायत्तता से जुड़ा है। कोर्ट ने गर्भवती को वैकल्पिक रूप से बच्चे को जन्म देने और गोद देने की प्रक्रिया से भी अवगत कराने को कहा। हालांकि कोर्ट को संवैधानिक मूल्यों के अनुपालन में भारी मन से गर्भपात की अनुमति देनी पड़ी और चिकित्सकीय प्रक्रिया को सुरक्षित ढंग से संपन्न कराने का निर्देश दिया।

यह भी पढ़ें - विचाराधीन मामलों में पुलिस के अनधिकृत हस्तक्षेप पर लगाम, सरकार ने जारी किए 15 सख्त दिशा-निर्देश

संबंधित समाचार