धर्म में दखल मंजूर नहीं', बांके बिहारी ट्रस्ट अध्यादेश के खिलाफ फिर कोर्ट पहुंचे गोस्वामी
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट में वृंदावन स्थित ऐतिहासिक श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन हेतु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाए गए "बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025" की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए एक अन्य याचिका दाखिल की गई है। यह याचिका पीठासीन देवता श्री बांके बिहारी की ओर से शेबैत ज्ञानेंद्र गोस्वामी और रसिक राज गोस्वामी तथा हरिदासी संप्रदाय के सखी संप्रदाय के सदस्यों द्वारा दाखिल की गई है।
याचियों का कहना है कि यह अध्यादेश मंदिर की परंपरागत सेवा-पूजा प्रणाली और वंशानुगत प्रबंधन प्रणाली में हस्तक्षेप करता है और संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(जी), 25, 26 और 300ए का उल्लंघन करता है। याचिका में तर्क दिया गया है कि मंदिर एक निजी धार्मिक संस्थान है, जिसकी स्थापना 16वीं शताब्दी में स्वामी जगन्नाथ ने की थी। ट्रस्ट के नाम पर मंदिर की संपत्ति को राज्य एजेंटों को सौंपने की मंशा धर्मनिरपेक्षता की संवैधानिक भावना के विरुद्ध है। मंदिर के प्रशासन और प्रबंधन में सरकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, बल्कि वर्तमान शेबैत/ गोस्वामी वंशज अपनी- अपनी बारी के अनुसार प्रबंधन और प्रशासन संभाल लेंगे।
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ के समक्ष गुरुवार को हुई। याचिका पर सुनवाई के दौरान अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका लंबित है, जिस पर शुक्रवार को सुनवाई प्रस्तावित है। वर्तमान मामले में याचियों ने अध्यादेश को असंवैधानिक घोषित करने और सरकार को मंदिर के प्रशासन में हस्तक्षेप से रोकने की मांग की है। मौजूदा याचिका की अगली सुनवाई आगामी 20 अगस्त को सुनिश्चित की गई है।
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