Kanpur : बेटे-बहू ने किया बेघर, डीएम ने बुर्जुग दंपति को आशियाना में भेजा वापस

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Published By Deepak Mishra
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कानपुर, अमृत विचार। नौबस्ता के न्यू आजाद नगर निवासी 75 वर्षीय संतोष कुमार द्विवेदी और उनकी पत्नी के लिए नौ वर्ष बाद फिर से अपने घर की चौखट पार करना एक बड़े राहत क्षण से कम नहीं। पारिवारिक तनाव और बढ़ती प्रताड़ना के बीच उनके पुत्र और पुत्रवधू ने उन्हें घर से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया था। दंपती रिश्तेदारों और किराये के कमरों में रहकर न्याय की प्रतीक्षा करते रहे। 

अंततः जिला मजिस्ट्रेट जितेंद्र प्रताप सिंह की अदालत में उनकी गुहार सुनी गई और उन्हें दोबारा गरिमापूर्ण निवास का अधिकार मिला। बुजुर्ग दंपति का आरोप था कि उनके पुत्र और पुत्रवधू ने उनके साथ बेरुखी भरा व्यवहार किया और 2018 में उन्हें घर से निकलने पर मजबूर कर दिया।

यह वही मकान था जिसे उन्होंने उम्रभर की कमाई और इस उम्मीद के साथ बनाया था कि यहीं परिवार के साथ शांति से बुजुर्गावस्था बिताएंगे लेकिन दंपति को अपनी ही दहलीज छोड़ अलग-अलग स्थानों पर आश्रय लेना पड़ा। 

कानूनी लड़ाई कई वर्षों तक निचली अदालतों में चली और बाद में उच्च न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट को मामले की सुनवाई कर निर्णय देने का निर्देश दिया। इस पृष्ठभूमि में डीएम कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर दिया।

जिलाधिकारी ने आदेश में कहा कि माता–पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण–पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बुजुर्गों को उनकी संपत्ति और निवास से वंचित न किया जाए। वरिष्ठ नागरिक को सुरक्षित और शांतिपूर्ण निवास का अधिकार कानून की मूल भावना है।

जिलाधिकारी ने चकेरी थाना प्रभारी को निर्देश दिया कि तत्काल दंपती को उनके हिस्से के आवास में प्रवेश कराएं। सिविल कोर्ट में लंबित अन्य पारिवारिक वाद अपने स्तर पर चलते रहेंगे, परंतु वृद्धजन को उनकी छत से वंचित नहीं किया जा सकता।

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