इलाहाबाद उच्च न्यायालय : एशिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट को मिला नया संबल
प्रयागराज। एशिया का सबसे बड़ा हाईकोर्ट इलाहाबाद उच्च न्यायालय बीते वर्षों से न्यायाधीशों की कमी और मुकदमों के बढ़ते बोझ से कराह रहा था। न्यायाधीशों के 160 स्वीकृत पदों के बावजूद यहाँ कभी पूरी संख्या में न्यायाधीश नहीं रहे।
परिणाम यह हुआ कि न्याय के इंतजार में वादकारी और अधिवक्ता लगातार हताश होते रहे, और लंबित मुकदमों की फेहरिस्त लगातार लंबी होती गई। स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधान पीठ इलाहाबाद में ही वर्तमान समय में 9,75,170 मुकदमे लंबित हैं, जिनमें सिविल के 4,89,275 और 4,85,895 आपराधिक मामले शामिल हैं।
इतनी बड़ी संख्या में लंबित मामलों ने न्यायपालिका की विश्वसनीयता और कार्यक्षमता दोनों को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था। ऐसी विकट स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा 24 नए न्यायाधीशों की नियुक्ति निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक और दूरगामी कदम है।
गत 27 सितंबर को केंद्र सरकार की संस्तुति के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के इतिहास का सबसे बड़ा शपथ ग्रहण समारोह आयोजित हुआ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली ने सभी नवनियुक्त न्यायाधीशों को शपथ दिलाई, जिनमें दस अधिवक्ता विवेक सरन, विवेक कुमार सिंह, गरिमा प्रसाद, सुधांशु चौहान, अबधेश कुमार चौधरी, स्वरूपमा चतुर्वेदी, सिद्धार्थ नंदन, कुणाल रवि सिंह, इंद्रजीत शुक्ला और सत्य वीर तथा वरिष्ठ न्यायिक सेवाओं से आए 14 न्यायिक अधिकारियों में डॉ. अजय कुमार (द्वितीय), चवन प्रकाश, दिवेश चंद्र सामंत, प्रशांत मिश्रा (प्रथम), तरूण सक्सैना, राजीव भारती, पदम नारायण मिश्र, लक्ष्मी कांत शुक्ला, जय प्रकाश तिवारी, देवेंद्र सिंह (प्रथम), संजीव कुमार, वाणी रंजन अग्रवाल, अचल सचदेव और बबीता रानी शामिल हैं। इन नियुक्तियों से न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या अब 110 हो गई है, हालांकि 50 पद अभी भी रिक्त हैं। उक्त नियुक्तियों के संदर्भ में इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता समीर शर्मा का कहना है कि “यह नियुक्ति न्यायहित में एक बड़ा कदम है।
लंबित मामलों की सूची घटेगी और न्यायपालिका का संतुलन स्थापित होगा।” इसी क्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत मिश्रा कहते हैं “जजों की कमी के कारण अधिवक्ताओं और वादकारियों को लंबे समय से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। अब 24 नए जजों की नियुक्ति से यह समस्या काफी हद तक दूर होगी। तकनीकी रूप से दक्ष न्यायाधीश ई-कोर्ट को भी बढ़ावा देंगे।” इसी क्रम में अधिवक्ता माधवेंद्र सिंह मानते हैं “दशहरे की छुट्टियों के बाद कोर्ट खुलने पर नई पीठों का गठन अधिक व्यवस्थित तरीके से हो सकेगा। जिन क्षेत्रों में खंडपीठ की आवश्यकता थी, वहां अब राहत मिलेगी।
न्यायाधीशों की नियुक्तियों को न्यायहित में एक सार्थक पहल मानते हुए अधिवक्ता पुरुषोत्तम मणि त्रिपाठी कहते हैं “यह नियुक्ति न्यायिक क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम है। यह वर्षों से लंबन झेल रहे वादकारियों के लिए एक वरदान के समान है, जिससे न केवल लंबित मामलों के निपटारे में तेजी आएगी बल्कि न्यायपालिका का न्यायिक बल और अधिक सुदृढ़ होगा।” इन नियुक्तियों से केवल संख्या नहीं बढ़ी है, बल्कि विविध अनुभव और तकनीकी दक्षता भी न्यायपालिका में जुड़ी है।
अधिवक्ताओं के रूप में वर्षों तक जमीनी स्तर पर संघर्ष कर चुके लोग अब पीठ पर बैठेंगे और जिला स्तर पर कार्य कर चुके अधिकारी अपने अनुभव से न्याय व्यवस्था की जटिलताओं को सरल करेंगे। 24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश राज्य में यह कदम केवल न्यायालय तक सीमित सुधार नहीं है, बल्कि यह सामाजिक विश्वास को पुनर्जीवित करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण है। न्यायिक प्रक्रिया की गति बढ़ेगी तो न्याय के प्रति जनता की आस्था और भी प्रबल होगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में 24 नए न्यायाधीशों की नियुक्ति केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं बल्कि न्यायपालिका को सुदृढ़ बनाने वाला ऐतिहासिक क्षण है। यद्यपि 50 पद अभी भी रिक्त हैं, लेकिन यह पहल बताती है कि न्यायिक व्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिशें तेज हो रही हैं। यदि शेष रिक्तियों को भी शीघ्र भरा गया तो न केवल 9.75 लाख लंबित मुकदमों का बोझ घटेगा, बल्कि न्याय की प्रक्रिया में वह गति आएगी जिसकी वर्षों से प्रतीक्षा की जा रही थी।
