जेब में लैब: पलक झपकते बीमारियों की जांच

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Published By Muskan Dixit
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बीमारियों की जांच के लिए अब न तो पैथोलॉजी लैब में लाइन लगाने की जरूरत होगी और न ही रिपोर्ट के लिए अगले दिन का इंतजार करना पड़ेगा। यह बड़ा बदलाव संभव होगा आईआईटी कानपुर के वैज्ञाानिकों की पहल से। दरअसल आईआईटी कानपुर ने एक ऐसी अत्याधुनिक पोर्टेबल डायग्नोस्टिक डिवाइस विकसित की है,  जो हमारे रोजमर्रा के जीवन और स्वास्थ्य व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाली साबित हो सकती है। यह छोटा-सा उपकरण किसी भी व्यक्ति के रक्त, मूत्र, पसीने और लार के सैंपल से न सिर्फ विभिन्न रोगों की जांच कर सकता है, बल्कि मिट्टी और पेय पदार्थों में मौजूद प्रदूषण की पहचान करके भी तत्काल रिपोर्ट उपलब्ध कराने में भी सक्षम है। इन्हीं विशेषताओं के कारण माना जा रहा है कि आईआईटी कानपुर की यह खोज भारत को सस्ती, तेज और सटीक जांच तकनीक के क्षेत्र में बड़ी पहचान दिला सकती है। ‘जेब में लैब’ जैसी यह डिवाइस आने वाले समय में स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों क्षेत्रों में नया अध्याय लिख सकती है।   

तीन हजार की डिवाइस और 20 रुपये की कागज चिप

तीन हजार रुपये में तैयार होने वाली इस डिवाइस से की जाने वाली जांच भी बेहद सस्ती है। जांच के लिए कागज से बनी चिप का प्रयोग किया जाता है, जिससे जांच परिणाम तुरंत मिल जाते हैं। जांच प्रक्रिया तत्काल पूरी किए जाने से रक्त, मूत्र या लार के नमूनों के दूषित या बिगड़ने का खतरा भी नहीं रहता है। इस डिवाइस को कोई भी डॉक्टर अपनी क्लीनिक पर रख सकता है। इसके लिए कागज पर कार्बन इलेक्ट्रोड चिप बनाई गई है, जिसकी लागत 15 से 20 रुपये है।

मलेरिया, डेंगू, टायफाइड की आसानी से जांच 

आईआईटी कानपुर की शोध टीम के अनुसार यह डायग्नोस्टिक डिवाइस बायोसेन्सिंग तकनीक पर आधारित है। यानी यह शरीर के तरल पदार्थों में मौजूद बायोमार्कर्स की पहचान करके बीमारी का पता लगाती है। इसके चलते इसकी मदद से मलेरिया, डेंगू, टायफाइड जैसी संक्रामक बीमारियों के अलावा कई प्रकार के सूक्ष्म संक्रमण और प्रदूषक तत्वों की भी पहचान आसानी से और फटाफट की जा सकती है।

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रिचार्जेबल डिवाइस का सोलर पैनल से भी संचालन

इस डिवाइस का इंटरफेस बेहद आसान है, इसके लिए किसी तकनीकी प्रशिक्षण की जरूरत नहीं पड़ती। बस सैंपल की एक बूंद डालते ही डिवाइस में लगे सेंसर सक्रिय हो जाते हैं और कुछ मिनटों में ही परिणाम उपलब्ध करा देते हैं। खास बात यह है कि यह डिवाइस रिचार्जेबल है और बिजली न होने की स्थिति में सोलर पैनल से भी संचालित की जा सकती है।

पोर्टेबल रीडआउट यूनिट फॉर केमिरसिस्टव सेंसर दिया नाम

आईआईटी कानपुर के बायो साइंस और बायो इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. संतोष कुमार मिश्र के निर्देशन में शोध छात्र अनिमेष कुमार सोनी तथा नेहा यादव द्वारा तैयार इस डिवाइस को पोर्टेबल रीडआउट यूनिट फार केमिरसिस्टव सेंसर नाम दिया गया है। इसके जरिए बॉयोलाजिकल और केमिकल दोनों तरह के मालिक्यूल की जांच की जा सकती है। डिवाइस का पेटेंट आवेदन स्वीकृत हो चुका है। अनिमेष के अनुसार कागज की चिप और डिवाइस सेंसर को अलग-अलग रसायनों की जांच के लिए विशेषीकृत किया गया है। हर जांच के लिए अलग-अलग डिवाइस और चिप का प्रयोग किया जाता है।

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डिवाइस की सबसे बड़ी विशेषता 

आईआईटी कानपुर द्वारा विकसित डायग्नोस्टिक 

डिवाइस की सबसे बड़ी विशेषता इसकी पोर्टेबिलिटी है। यानी यह एक ‘जेब में समा जाने वाली लैब’ जैसी है, जिसे लेकर किसी भी गांव, दूरस्थ इलाके या आपदा प्रभावित क्षेत्र में पहुंचा जा सकता है और वहां मौके पर जांच की जा सकती है। इस पोर्टेबल डिवाइस से जांच रिपोर्ट कुछ ही मिनटों में मोबाइल स्क्रीन पर मिल जाती है। ऐसे में माना जा रहा है कि यह डिवाइस ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए वरदान साबित हो सकती है, जहां संसाधनों की कमी के कारण अक्सर रोग की पहचान में देरी होती है, जिसका नुकसान मरीजों को उठाना पड़ता है।

ग्रामीण भारत के लिए ‘मेडिकल टेस्ट ऑन द स्पॉट’

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार आईआईटी कानपुर द्वारा विकसित पोर्टेबल डायग्नोस्टिक डिवाइस तकनीक से ग्रामीण भारत में रोग पहचान की प्रक्रिया में क्रांतिकारी सुधार होगा, जहां पहले जांच के लिए सैंपल शहर भेजे जाते थे, वहीं अब ‘मेडिकल टेस्ट ऑन द स्पॉट’ संभव होगा। यही नहीं, पर्यावरणविद् भी इस नवाचार को लेकर खासे उत्साहित हैं, क्योंकि यह मिट्टी, पानी और खाद्य पदार्थों में प्रदूषण का विश्लेषण करके, उन्हें सुरक्षित रखने का एक सस्ता और तेज साधन बन सकती है।

तकनीक हस्तांतरण का काम अंतिम चरण में

आईआईटी कानपुर के बायो साइंस और इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर संतोष कुमार मिश्र ने बताया कि पोर्टेबल रीडआउट यूनिट फॉर केमिरसिस्टव सेंसर के जांच परिणाम सटीक पाए गए हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र के अलावा इसकी मदद से खेतों की मिट्टी और पेय पदार्थों में मौजूद रसायनों की पहचान भी की जा सकती है। इससे दूध और शीतल पदार्थ की गुणवत्ता जांच भी संभव है। इस डिवाइस को बाजार में पहुंचाने के लिए तकनीक हस्तांतरण की दिशा में काम अंतिम चरण में है।

- मनोज त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार

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