प्रयागराज : स्व-प्रतिनिधित्व वाले याचियों की त्रुटिपूर्ण याचिकाओं पर कोर्ट ने लगाई फटकार

Amrit Vichar Network
Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत होने वाले एक याची की त्रुटिपूर्ण याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में कोर्ट बार-बार गंभीर कठिनाइयों का सामना करती है, क्योंकि न तो याचिका विधिसंगत रूप से तैयार होती है और न ही उसमें आवश्यक तथ्यात्मक प्रस्तुति होती है।

कोर्ट ने आगे कहा कि स्व-प्रतिनिधित्व पर कोई रोक नहीं है और कुछ मामलों में याची अधिवक्ताओं से बेहतर भी तर्क रखते हैं, लेकिन यह “अपवाद” है। वर्तमान याचिका के असंगत तथ्यों पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि याची एक ओर उस आदेश को निरस्त करने की मांग कर रहा था, जिससे उसका संविदा कार्यकाल बढ़ाया गया था, जो उसके ही हित के विरुद्ध है और दूसरी ओर चयन प्रक्रिया में असफल होने के बाद चयनित अभ्यर्थियों को चुनौती दी, जबकि उन्हें पक्षकार ही नहीं बनाया गया।

कोर्ट ने ‘सेलेक्शन कमिटी’ को प्रतिवादी बनाए जाने को भी एक स्पष्ट त्रुटि बताया। मामला 2024 से लंबित था। सुनवाई के प्रारंभ में जब कोर्ट ने याची को एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त करने को कहा तो उसने “सीधे इंकार” कर दिया। विश्वविद्यालय की ओर से बताया गया कि व्याख्याता पद पर अब कोई संविदा नियुक्ति नहीं है और सभी नियुक्तियां नियमित चयन प्रक्रिया से हो रही हैं। कोर्ट ने कहा कि याची द्वारा संदर्भित शासनादेश का कोई वैधानिक आधार नहीं है, साथ ही संविदा कर्मी को विस्तार का कोई अधिकार नहीं, विशेष रूप से तब जब नियमित नियुक्तियां हो चुकी हों।

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि “कई निर्णयों का हवाला देने से मामला मजबूत नहीं होता, यदि तथ्य ही प्रतिकूल हों।" अंत में कोर्ट ने कहा कि ऐसी त्रुटिपूर्ण याचिका पर कोई राहत नहीं दी जा सकती है। अंत में कोर्ट ने याचिका को कानून-विरुद्ध प्रार्थनाओं के कारण खारिज कर दिया और 5 हजार रुपये लागत स्वरूप याची को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कानपुर नगर में जमा करने का आदेश दिया।

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