कंप्यूटर सहायक को मदरसे में दिलाई नौकरी, खुद दे दी वित्तीय सहमति, फर्जी अंकपत्र और मदरसा बोर्ड के दस्तावेजों में हेराफेरी
लखनऊ, अमृत विचार: मदरसा शिक्षा परिषद में फर्जी अंकपत्र व दस्तावेजों में हेराफेरी करने वाले गिरोह के कारनामे धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं। वहीं, अधिकारियों की मिलीभगत की भी परतें खुलने लगी हैं। इस गिरोह के तार सीधे पूर्व रजिस्ट्रार और वर्तमान में मुरादाबाद मंडल के उपनिदेशक, अल्पसंख्यक कल्याण जगमोहन सिंह बिष्ट से जुड़ रहे हैं। बरेली के मदरसे में फर्जी तरीके से लिपिक के पद पर तैनात अमजद खान का मामला सामने आया है। उसकी नियुक्ति पर सवाल खड़े हुए। जांच में सामने आया कि नियुक्ति व उसकी वैधता देने का काम पूर्व रजिस्ट्रार जगमोहन सिंह बिष्ट ने किया था।
मदरसा बोर्ड में बड़े स्तर की फर्जीवाड़े का खेल चल रहा है। यह सारा खेल बोर्ड में तैनात बड़े अधिकारियों के संरक्षण, अनुमति या मिलीभगत के संभव नहीं है। पृष्ठ प्रतिस्थापन, रजिस्टर संशोधन, जाली अंकतालिकाओं के आधार पर परिषद में प्रवेश दिलाया गया। फिर बरेली में अमजद की नियुक्ति को वैधता देने के लिए वित्तीय सहमति जारी कर दी। इस मामले में हर स्तर पर एक अधिकारी का नाम सामने आया। वह पूर्व रजिस्ट्रार जगमोहन सिंह बिष्ट का है। दोनों पदों पर उनकी निर्णायक उपस्थिति, फर्जीवाड़े में उनकी भूमिका पर सवाल खड़े कर रही है। जांच में सामने आया कि अमजद खान से जुड़े फर्जी अभिलेखों को वैधता दिलाने में मुख्य भूमिका वास्तव में पूर्व रजिस्ट्रार की भूमिका रही है।
फर्जी दस्तावेजों के खेल में अमजद की भूमिका
बरेली के मदरसे, मदरसा जामा ए मेहंदिया, सैंथल में लिपिक के रूप में तैनात अमजद खान का है। उसने उच्च न्यायालय में दाखिल याचिका 6543/2025 में संलग्न की गई अंकतालिकाओं में जिन अनुक्रमांकों पर परीक्षार्थियों के अंक दर्ज दिखाए गए हैं। परिषद के मूल अभिलेखों में उन्हीं अनुक्रमांकों पर या तो भिन्न नाम दर्ज हैं या परीक्षार्थी अनुपस्थित पाया गया है। अमजद के विरुद्ध हाफिजगंज बरेली के थाने में एफआईआर भी दर्ज है। अमजद खान ने मदरसा प्रबंधक के हस्ताक्षरयुक्त दस्तावेज़ और प्रबंधक ने जिलास्तर पर भेजे । दस्तावेज़ों के हस्ताक्षरों में भी स्पष्ट अंतर पाया गया। अमजद ने अपनी आलिम परीक्षा 2015 में पास होना बताया। उसी वर्ष अप्रैल माह में उसकी नियमित उपस्थिति जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बरेली कार्यालय में दर्ज होती रही। उसकी नियुक्ति सेवा प्रदाता संस्था के माध्यम से उसी अवधि में की गई थी। यानी वह एक ही समय में सरकारी कार्यालय में नौकरी भी कर रहा था और उसी समय परीक्षा भी दे रहा था। जो संभव ही नहीं है। बाद में उसने अपने नियुक्ति आदेश और संबंधित जिला अधिकारी के पत्र की तिथियों में हेराफेरी कर 2015 से 2017 कर दीं। जो सरकारी अभिलेखों में की गई कूटरचना का प्रमाण है। उसकी स्नातक डिग्रियों में भी खेल पाया गया। एक ही अनुक्रमांक पर एक अभिलेख में एक कॉलेज और दूसरे अभिलेख में दूसरा कॉलेज, एक जगह संस्थागत परीक्षार्थी और दूसरी जगह व्यक्तिगत परीक्षार्थी था।
सांसद ने अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री से की जांच की मांग
कुशीनगर के सांसद विजय दुबे ने इसी आधार पर अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री को पत्र भेजकर पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उपलब्ध तथ्य केवल अमजद खान नाम के एक व्यक्ति की करतूत नहीं दिखाते, बल्कि उसके पीछे बैठे किसी प्रभावशाली अधिकारी की सक्रिय भूमिका भी है। पूरा मामला एक संगठित गिरोह के रूप में काम करने का है। इसमें दस्तावेजों में हेराफेरी, फर्जी दस्तखत, परीक्षा और नौकरी को एक साथ दिखाकर गुमराह करने का है। इसकी विशेष एजेंसी से जांच कराई जानी चाहिए।
