मेरा शहर मेरी प्रेरणा: कैंट सीट से एक परिवार की तीन पीढ़ियां विधायक बनीं
साबिर परिवार का बरेली में विकास की रफ्तार बढ़ाने में बड़ा योगदान रहा है। कैंट विधानसभा, जहां से एक परिवार की तीन पीढ़ियां ना केवल विधायक बनीं, बल्कि प्रदेश की राजनीति में अपना नया मुकाम भी हासिल किया। कैंट विधानसभा की राजनीति से ताल्लुक रखने वाला साबिर परिवार की तीन पीढ़ियों ने विधायकी के रूप में जनता के दिलों पर राज किया। सबसे पहले साबिर परिवार के मुखिया अशफाक अहमद विधायक बने, उसके बाद उनके बेटे इस्लाम साबिर विधायक बने, अब इस्लाम साबिर के बेटे शहजिल इस्लाम वर्तमान में भोजीपुरा सीट से विधायक हैं।
साबिर परिवार की राजनीतिक विरासत की बात करें तो कैंट विधानसभा सीट पर साबिर परिवार के मुखिया अशफाक अहमद ने कांग्रेस उम्मीदवार बनकर 1969, 1977, 1980 और 1996 में लगातार चार बार विधायक बनने का गौरव हासिल किया था। इसके बाद अशफाक के बेटे इस्लाम साबिर ने वर्ष 1991 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बने थे। 2002 के विधानसभा चुनाव की बात है, इस्लाम साबिर ने सपा प्रत्याशी के रूप में कैंट सीट पर अपना नामांकन दाखिल किया, तब तक शहजिल को राजनीति में कोई दूर-दूर तक नहीं जानता था। साबिर का पर्चा खारिज हो गया तो उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे शहजिल को सौंपने का ऐलान कर दिया, तब लोगों को पता लगा कि शहजिल का नामांकन पहले ही हो गया था।
सपा ने निर्दलीय होने के बाद भी शहजिल को समर्थन दिया और वह पहला चुनाव जीतकर विधायक बने। हालांकि, उस दौरान उनकी उम्र को लेकर भी सवाल उठे थे। वह उस वक्त सबसे कम उम्र में विधायक बने थे। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में शहजिल इस्लाम को सपा ने टिकट नहीं दिया तो वह बसपा में शामिल हो गए। बसपा ने उन्हें कैंट से नहीं, विधानसभा भोजीपुरा से चुनाव लड़ाया। वह दूसरी बार जीतकर विधायक बने। उस समय मुख्यमंत्री मायावती ने शहजिल को मुस्लिम वक्फ का राज्य मंत्री बनाया था। 2012 के चुनाव में शहजिल को बसपा ने प्रत्याशी नहीं बनाया तो उन्होंने मौलाना तौकीर रजा खां का दामन थाम लिया और उनकी पार्टी- इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल से भोजीपुरा सीट पर चुनाव मैदान में उतर गए। समीकरण ऐसे बने कि वह तीसरी बार जीतकर विधानसभा पहुंच गए, मगर उसके कुछ समय बाद मौलाना तौकीर रजा खां का साथ छोड़ दिया और समावादी पार्टी में शामिल हो गए थे।
डॉ जौहरी ऐसी शख्सियत थे कि भाजपा को सिंबल बांटने के बाद टिकट बदलना पड़ा
बरेली शहर को विकास की रफ्तार देने में एक नाम डॉ दिनेश जौहरी का भी है। डॉ. जौहरी बरेली शहर विधानसभा सीट से लगातार तीन बार विधायक रहे। कल्याण सिंह सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। शहर विधानसभा सीट से 1985 में डॉ. दिनेश जौहरी जब पहली बार विधायक चुने गए थे, तब प्रदेश में भाजपा के सिर्फ 14 विधायक थे। डॉ. जौहरी भाजपा के पहले शहर अध्यक्ष (अब महानगर) रहे थे। डॉ जौहरी ऐसी शख्सियत थे कि अकेले स्कूटर से जाकर नामांकन कराया और फिर भाजपा को टिकट बदलना पड़ा। बताते हैं कि 1985 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने राजकुमार अग्रवाल का टिकट तय फाइनल किया था। इसी बीच डॉ. दिनेश जौहरी भी नामांकन दाखिल कर आए। जबकि पार्टी का सिंबल राजकुमार अग्रवाल के पास था और वह कार्यकर्ताओं के साथ नामांकन करने गए थे। बताते हैं कि डॉ. दिनेश जौहरी अकेले स्कूटर से नामांकन कर आए थे। इसके बाद पार्टी संगठन ने बैठक कर तय किया कि शहर विधानसभा से डॉ. दिनेश जौहरी चुनाव लड़ेंगे। खुद राजकुमार अग्रवाल ने भी सहमति दी थी और अपना नामांकन वापस लिया था। इसके बाद राजकुमार अग्रवाल ने डॉ. दिनेश जौहरी को तिलक लगाकर समर्थन दिया था। इस तरह 1985 में चुनाव जीतकर वह पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद 1989 में दूसरी बार और 1991 में जीत की हैट्रिक लगाई थी।
सेठ दामोदर स्वरूप बरेली में क्रांतिकारी गतिविधियों के केंद्र थे
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दामोदर स्वरूप सेठ पुत्र बहादुर लाल सेठ निवासी बिहारीपुर ने आजादी के बिगुल को बरेली में जमकर फूंका था। 1946 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहने के बाद भारतीय सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी रहे। वह कांग्रेस पार्टी के टिकट पर संयुक्त प्रांत से विधानसभा के लिए चुने गए थे। विधानसभा में उनके हस्तक्षेप मौलिक अधिकारों और एक नई संविधान सभा की आवश्यकता पर केंद्रित थे। वह अंतरित संसद के सदस्य रहे। उन्होंने बरेली ही नहीं, बल्कि रोहिलखंड मंडल में 20 वीं सदी की क्रांति का अहम किरदार निभाया। सरदार भगत सिंह के युग तक सक्रिय रहने वाले क्रांतिकारी सेठ दामोदर स्वरूप बरेली में क्रांतिकारी गतिविधियों के केंद्र थे।
