मंदिर का पैसा अराध्य का, इसका इस्तेमाल सहकारी बैंक को बचाने के लिए नहीं किया जा सकता : न्यायालय 

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Published By Muskan Dixit
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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि किसी मंदिर के अराध्य के धन का उपयोग वित्तीय संकटग्रस्त सहकारी बैंकों को सहारा देने के लिए नहीं किया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह कड़ी टिप्पणियां कुछ सहकारी बैंकों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई के दौरान कीं। अपील में केरल उच्च न्यायालय के उस निर्देश को चुनौती दी गई थी, जिसमें बैंकों से थिरुनेल्ली मंदिर देवास्वोम को जमा राशि लौटाने को कहा गया था।

प्रधान न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान सवाल किया, ‘‘आप मंदिर के धन का उपयोग बैंक को बचाने के लिए करना चाहते हैं? यह निर्देश देने में क्या गलत है कि मंदिर का धन, संकट ग्रस्त सहकारी बैंक में रखने के बजाय एक आर्थिक रूप से सुदृढ़ राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा किया जाना चाहिए जो अधिकतम ब्याज दे सके।’’ न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मंदिर का धन वहां के अराध्य का है और इसलिए, इस धन को ‘‘केवल मंदिर के हितों के लिए ही बचाया, संरक्षित और उपयोग किया जाना चाहिए’’ तथा यह किसी सहकारी बैंक के लिए आय या जीवनयापन का स्रोत नहीं बन सकता। मनंतवाडी को-ऑपरेटिव अर्बन सोसाइटी लिमिटेड और थिरुनेल्ली सर्विस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर की थी जिसपर प्रधान न्यायाधीश की पीठ ने सुनवाई की।

उच्च न्यायालय ने पांच सहकारी बैंकों को निर्देश दिया था कि वे देवस्वओम की सावधि जमा राशि को बंद कर दो महीने के भीतर पूरी राशि वापस कर दें, क्योंकि बैंकों ने परिपक्व जमा राशि जारी करने से बार-बार इनकार कर दिया था। पीठ ने बैंकों की इस दलील से असहमति जताई कि उच्च न्यायालय के अचानक दिये गए निर्देश से कठिनाइयां पैदा हो रही हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि बैंकों को लोगों के बीच अपनी विश्ववसनीयता स्थापित करनी चाहिए। पीठ ने सहकारी बैंकों को कहा, ‘‘अगर आप ग्राहकों से जमा आकर्षित कराने में अक्षम हैं तो यह आपकी समस्या है।’’ इसी के साथ उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

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