संपादकीय: संकट मोचन सरकार
इंडिगो के परिचालन संकट ने एक बार फिर भारतीय उड्डयन क्षेत्र की नियामकीय कमजोरियों, मानव संसाधन प्रबंधन की खामियों और कंपनियों की मनमानी के बीच आम यात्री की घंघोर उपेक्षा को उजागर कर दिया है। सरकार द्वारा जारी तात्कालिक उपाय-फ्लाइट कटौती, विशेष मॉनीटरिंग और पायलट ड्यूटी टाइम में सख्ती- निश्चित रूप से स्थिति को आंशिक राहत देते हैं, पर यह मान लेना जल्दबाज़ी होगी कि केवल इन कदमों से पूरा संकट समाप्त हो जाएगा। सरकार के नए एक्शन से, ‘इलेक्टोरल बांड के जरिए इंडिगो से मोटा चंदा लेने के चलते वह इंडिगो पर कठोर नहीं है’, आरोप बेअसर हो सकता है, हालांकि साफ है कि किसी भी नियामक हस्तक्षेप की समय सीमा और गंभीरता स्वयं बहुत कुछ कह देती है। वर्षों से जो समस्या जारी थी, उस पर नियामकों की निगरानी क्यों विफल रही? इससे संदेह उभरते हैं, मौजूदा कार्रवाई भर से इसे मिटाना मुश्किल है।
इंडिगो का मौलिक संकट पायलटों की भारी कमी, एफडीटीएल नियमों की अवहेलना और मानव संसाधन नीतियों में ‘लीन स्टाफिंग’ के अत्यधिक प्रयोग से उपजा है। पायलट संघों ने पिछले दो वर्षों में कई बार चेतावनी दी थी कि इंडिगो ने हायरिंग फ्रीज, नॉन-पोचिंग व्यवस्था और न्यूनतम क्रू मॉडल के कारण भविष्य के संकट को स्वयं आमंत्रित किया है। यह भी चौंकाने वाली बात है कि दो वर्ष के ट्रांजिशन पीरियड के दौरान कंपनी ने पायलटों की संख्या को नियमानुसार 14–16 प्रति विमान तक क्यों नहीं बढ़ाया? यदि यह मानक पूरा किया जाता तो आज फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन नियमों को लागू करने में यह अव्यवस्था नहीं होती। सवाल है कि डीजीसीए और उड्डयन मंत्रालय ने इस संकट को शुरुआती चरणों में ही क्यों नहीं रोका?
एक एयरलाइन को ‘लीन ऑपरेशन’ की आड़ में अपनी क्षमता से कहीं अधिक फ्लाइट शेड्यूल चलाने देना न केवल यात्रियों के साथ अन्याय है, बल्कि उड्डयन सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ है। इस संकट का सबसे बड़ा बोझ यात्रियों पर पड़ा है। फ्लाइटें कैंसिल होने से किसी की नौकरी का मौका छूटा, किसी बीमार को उपचार नहीं मिल पाया, किसी का पारिवारिक या व्यावसायिक जीवन प्रभावित हुआ। ऐसे में केवल टिकट का पैसा वापस कर देना कोई समाधान नहीं। वास्तविक नुकसान आर्थिक, मानसिक और कई बार अपरिवर्तनीय होता है।
भारत को ‘पैसेंजर राइट्स’ के स्पष्ट और बाध्यकारी नियमों की तात्कालिक आवश्यकता है, ताकि एयरलाइंस असुविधा नहीं, हानि की भरपाई करने के लिए बाध्य हों- जैसा कि कई विकसित देशों में व्यवस्था है। इंडिगो की छवि, गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। साथ ही भारतीय उड्डयन क्षेत्र की साख पर भी प्रश्न चिह्न लगा है। अंतर्राष्ट्रीय विमानन बाजार भारत को संभावनाओं की भूमि मानता है, पर इस प्रकार की अव्यवस्थित स्थितियां उसके भरोसे को कमजोर करती हैं। सरकार के कदम संकट को तत्काल थामने की कोशिश प्रतीत होते हैं, परंतु यह तभी विश्वसनीय बनेंगे जब उड्डयन मंत्रालय दीर्घकालीन ढांचे में सुधार, भर्ती मानकों, कार्य-समय निगरानी, फ्लाइट स्वीकृति प्रक्रिया और यात्री अधिकारों को संस्थागत रूप से लागू करे। फौरी उपाय बेहतर हैं पर सरकार को वास्तव में स्थायी समाधान के प्रति गंभीर होना होगा।
