भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय का शताब्दी समारोह धूमधाम से समाप्त: राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा – “विश्व का पथ-प्रदर्शक है यह संस्थान”
हर जिले में होना चाहिए ओपन एयर थियेटर : असीम अरुण
लखनऊ, अमृत विचार : भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह का समापन राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने किया। तीन दिवसीय शताब्दी समारोह का अंतिम दिन संगीत और नृत्य की अनुपम प्रस्तुतियों से मनमोहक रहा। समारोह के अंतिम दिन राज्यपाल मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहीं और उन्होंने विश्वविद्यालय का औपचारिक समापन किया। विश्वविद्यालय पहुंचकर उन्होंने पहले विश्वविद्यालय की गौरवगाथा प्रदर्शित करने वाली वीथिका का अवलोकन किया।
कलामंडपम सभागार में कुलपति प्रो. मांडवी सिंह ने उन्हें अंगवस्त्र एवं स्मृति-चिह्न भेंट कर अभिनंदन किया। विशिष्ट अतिथि समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण का भी स्वागत किया गया। समारोह में डॉ. पूनम श्रीवास्तव की पुस्तक भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय : एक सांगीतिक यात्रा का विमोचन किया गया। गायन विभाग की अध्यक्ष प्रो. सृष्टि माथुर को शोध एवं सांगीतिक संयोजन के लिए प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया गया। विश्वविद्यालय के गौरवगाथा और सांस्कृतिक योगदान पर आधारित लघु फिल्म भी प्रदर्शित की गई।
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समारोह में विश्वविद्यालय के प्रतीक-चिह्न के निर्माता डॉ. गौरी शंकर चौहान और विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं का सम्मान किया गया। स्वर वाद्य में स्वयं मिश्रा, नृत्य में वल्लरी नारायण पाठक, गायन में हर्ष शर्मा और तालवाद्य में आलोक मिश्र को प्रथम स्थान के लिए सम्मानित किया गया।
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अपने उद्बोधन में कहा कि विश्वविद्यालय न केवल देश, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए पथ-प्रदर्शक रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों के योगदान की सराहना की और कहा कि भारतीय संगीत जगत में भातखंडे से दीक्षित कलाकारों की गूंज स्पष्ट सुनाई देती है। उन्होंने अनूप जलोटा, नौशाद और पूर्णिमा पांडेय जैसे कलाकारों का उल्लेख किया और यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक धरोहर का संदेश देता है।
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विशिष्ट अतिथि असीम अरुण ने भातखंडे जी को नमन किया। उन्होंने कहा कि पं. विष्णु नारायण भातखंडे द्वारा रोपा गया बीज आज वटवृक्ष बन गया है। उन्होंने शाम-ए-अवध जैसे सांस्कृतिक आयोजनों और ओपन एयर थियेटर की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसे हर जिले में शुरू किया जाना चाहिए।
समापन दिवस की संगोष्ठी में बनारस घराने के सुप्रसिद्ध तबला वादक पं. संजू सहाय ने ओजस्वी तबला वादन प्रस्तुत किया। उन्होंने घराने की परंपरा और तीन ताल में सशक्त तबला वादन के साथ जोगिया गीत पर प्रस्तुति दी।
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दूसरे सत्र में पद्मश्री शोवना नारायण ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया। उन्होंने महाभारत प्रसंग, श्रीकृष्ण के रणभूमि आगमन, चौसर पर पांडवों की पराजय और द्रौपदी चीर-हरण को भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया। प्रस्तुति में ना-धिन-धिन-ना की तिहाई, वर्षा की कल्पना और राधा-कृष्ण का आनंदमय नृत्य दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गया।
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संगीत सहयोग में इमरान खान (स्वर), महावीर गंगानी (पखावज), अज़हर शकील (वायलिन) और यश गंगानी (तबला) ने उत्कृष्ट संगत दी। कुलपति प्रो. मांडवी सिंह, कुलसचिव डॉ. सृष्टि धवन, प्रमुख सचिव एमपी अग्रवाल और पूर्व कुलपति प्रो. पूर्णिमा पांडेय ने शोवना नारायण और उनके संगत कलाकारों को अंगवस्त्र एवं स्मृति-चिह्न देकर सम्मानित किया।
