प्रयागराज : कैविएट मामलों में नोटिस व्यवस्था पर हाईकोर्ट ने दिए दिशानिर्देश
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के समक्ष दाखिल कैविएट मामलों में नोटिस जारी करने की प्रक्रिया को लेकर बाहर के अधिवक्ताओं से जुड़े प्रकरणों में आने वाली व्यावहारिक दिक्कतों पर चिंता जताते हुए कहा कि निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रिया में सुधार आवश्यक है। उक्त टिप्पणी जे.जे.मुनीर की एकलपीठ ने मथुरा निवासी त्रिभुवन गोयल की याचिका को निस्तारित करते हुए की।
कोर्ट ने माना कि कैविएट दाखिल करने वाले बाहर के अधिवक्ता से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह उस स्थान पर रहने वाले किसी स्थानीय सहयोगी अधिवक्ता को नामित करे, जहां बोर्ड की संबंधित पीठ स्थित हो। वैकल्पिक रूप से, ऐसे अधिवक्ता को ई-मेल पता देना अनिवार्य किया जा सकता है, जिस पर सिस्को वेबएक्स, गूगल मीट या भारत वीसी के माध्यम से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा उसकी बात सुनी जा सके। कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत याचिका में बोर्ड ऑफ रेवेन्यू द्वारा कैविएट दाखिल होने के बावजूद बिना नोटिस दिए एकतरफा अंतरिम रोक आदेश पारित किए जाने को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने पाया कि वर्तमान में बोर्ड की रजिस्ट्री कैविएट दाखिल होने के बावजूद संबंधित अधिवक्ता को समय पर नोटिस नहीं देती और यह प्रक्रिया स्पष्ट रूप से दोषपूर्ण है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि बाहर के अधिवक्ताओं के मामलों में कैविएट की सूचना और संभावित सुनवाई की तारीख के बीच कम से कम एक सप्ताह का अंतर होना चाहिए। केवल डाक से नोटिस भेजने की व्यवस्था को भी अधिकारों के प्रतिकूल बताया गया।
कोर्ट ने कहा कि नोटिस देने के लिए ई-मेल, मोबाइल संदेश, व्हाट्सएप जैसे माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है और उसकी पुष्टि के साक्ष्य जैसे, स्क्रीनशॉट और अन्य को कार्यवाही के कागज़ों के साथ संलग्न किया जाए, साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह जिम्मेदारी याची के अधिवक्ता की होगी कि वह केस स्टेटस और वेबसाइट देखें। कोर्ट ने यह व्यापक दिशानिर्देश जारी किया है, जिन्हें बोर्ड ऑफ रेवेन्यू अपने मौजूदा नियमों और उपलब्ध ढांचे के अनुरूप लागू कर सकता है। आवश्यकता होने पर नियमों में संशोधन पर भी विचार किया जा सकता है।
