बरेली: खेती में बहाया पसीना तो मशरूम से मशहूर हो गए संतोष

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अमृत विचार, बरेली। कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों, कवि दुष्यंत की ये पंक्तियां भदपुरा विकास खंड के गांव बरखन में रहने वाले प्रगतिशील किसान संतोष गंगवार पर सटीक बैठती हैं। परंपरागत खेती से लगातार मिले धोखे और सेना में जाने की चाह पूरी न …

अमृत विचार, बरेली। कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों, कवि दुष्यंत की ये पंक्तियां भदपुरा विकास खंड के गांव बरखन में रहने वाले प्रगतिशील किसान संतोष गंगवार पर सटीक बैठती हैं। परंपरागत खेती से लगातार मिले धोखे और सेना में जाने की चाह पूरी न होने पर बिना किसी सरकारी मदद उसने खेत के छोटे से भाग में मशरूम की खेती करने का फैसला लिया। तमाम विरोध और परेशानियों के बाद भी कदम पीछे नहीं हटे और आज उसी मशरूम की बदौलत मंडल के अलावा कई अन्य जिलों में वह मशहूर हो गए हैं।

किसान परिवार से संबंध रखने वाले बरखन गांव के संतोष कुमार की उम्र महज 25 वर्ष है। पिता सुंदरलाल गंगवार जैविक खेती करते हैं। इसके अलावा प्रगतिशील किसानों में शामिल ग्रेम गांव के सर्वेश कुमार, रजपुरा माफी के ओमप्रकाश समेत तमाम किसान हैं जो बड़े बुजुर्गों के तजुर्बे के साथ आधुनिक साधनों का इस्तेमाल कर दूसरे किसानों के लिए नजीर बने हैं।

बीए पास संतोष बताते हैं कि उनका सपना सेना में जाकर देश की सेवा करना था। इसके लिए वह काफी दौड़-भाग करते रहे। दो बार सेना और एक बार पुलिस भर्ती में गये लेकिन चाह पूरी नहीं हुई। इसके बाद नौकरी न करने की ठानी और परंपरागत खेती से हटकर मशरूम की खेती शुरू कर दी। गरीबी के चलते तमाम परेशानियों का सामना किया। अंत में अपने खेतों पर पसीना बहाया और मशरूम के रूप में खेत से सोना मिलना शुरू हो गया। पहले ही प्रयोग ने तकदीर बदलनी शुरू कर दी। उसका एक फैसला पूरे परिवार की जिंदगी बदलने वाला बन गया है। आज लोग संतोष को संतोष मशरूम वाले के नाम से जानते हैं।

मेहनत और मशरूम ने कर दिए सारे दुख दूर

संतोष कुमार बताते हैं, ‘तीन साल पहले उन्होंने पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण लिया। इसके बाद मशरूम की खेती शुरू की। पहले साल खेती कम होने की वजह से नुकसान हुआ। फिर भी हार नहीं मानी। घर के पास एक झोपड़ी थी लेकिन मशरूम उत्पादन के लिए अलग से किराये पर मकान लिया। इसके बाद तैयार मशरूम को लेकर को आसपास के बाजार में बेचा।’ धीरे-धीरे मांग बढ़ी तो मशरूम की बदौलत बरेली मंडल के अलावा मुरादाबाद व आसपास के जिलों में भी वह मशहूर हो गए। इसकी आय की बदौलत वह खुद का प्लांट लगा चुके हैं। अब उद्यान विभाग ने भी उन्हें सरकारी मदद का भरोसा दिलाया है।

प्रति माह छह क्विंटल मशरूम का उत्पादन

संतोष के मुताबिक, वह बटन और ओईस्टर किस्म के मशरूम की खेती करते हैं। प्रति माह 300 वर्ग गज में छह क्विंटल मशरूम का उत्पादन होता है। दो साल पहले जब मशरूम की खेती शुरू की थी उस समय उत्पादन मात्र तीन क्विंटल के करीब था। फसल तैयार करने पर कुल खर्च एक लाख रुपये के करीब आता है जबकि उत्पादित फसल से आय लगभग तीन लाख रुपये है।

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