बरेली: तीन दशक बाद फिर महानगर के लोग सुनेंगे घंटाघर की आवाज
बरेली, अमृत विचार। स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत कुतुबखाना के पास बने घंटाघर के कायाकल्प का काम शुरू हो गया है। शहर की पहचान बने घंटाघर का ढांचा काफी जर्जर हो गया था। काफी समय से इसकी घड़ी की सुईंयां भी बंद पड़ी थीं। अब इसका सौंदर्यीकरण किया जा रहा है, जिसके पूरे होते ही …
बरेली, अमृत विचार। स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत कुतुबखाना के पास बने घंटाघर के कायाकल्प का काम शुरू हो गया है। शहर की पहचान बने घंटाघर का ढांचा काफी जर्जर हो गया था। काफी समय से इसकी घड़ी की सुईंयां भी बंद पड़ी थीं। अब इसका सौंदर्यीकरण किया जा रहा है, जिसके पूरे होते ही करीब तीन दशक के बाद शहर के लोग इसके घंटे की आवाज सुन सकेंगे। घंटाघर की मरम्मत में करीब 90 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे। घंटाघर को रात में चकाचौंध करने के लिए आकर्षक लाइटों से भी सजाया जाएगा।
महानगर का प्राचीन घंटाघर गिनी-चुनी महत्वपूर्ण इमारतों में से एक है, जो बरेली की पहचान को दर्शाता है। नई पीढ़ी को तो इसके इतिहास के बारे में कुछ भी पता नहीं है। मेयर डॉ. उमेश गौतम ने इसका वजूद बनाए रखने के लिए स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल कराया। शहर के तमाम जागरूक और सामाजिक लोगों ने राज्य सरकार से कुतुबखाना घंटाघर की इमारत के सौंदर्यीकरण की मांग की थी।
परियोजना के तहत इसे एबीडी एरिया में शामिल करने की मांग प्रशासन के सामने रखी थी। मेयर ने बताया कि घंटाघर की इमारत का स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत कायाकल्प कराया जा रहा है। घंटाघर की घड़ी को भी ठीक कराया जा रहा है। इधर, निर्माणदायी संस्था ने इसके कायाकल्प का काम शुरू कर दिया है। एक तरफ की दीवार को भी तोड़कर वहां फड़ दुकानदारों को हटाया गया है।
1975 में कुतुबखाना के पास बनाया गया था घंटाघर
कुतुबखाना के पास वर्ष 1975 में घंटाघर का निर्माण कराया गया था। उस समय लोग समय देखने के लिए इसी की सुविधा लेते थे। 30 साल पहले इसकी घड़ी खराब हो गई थी, तब से मरम्मत नहीं कराई गई। करीब 45 साल बाद घंटाघर का सौंदर्यीकरण शुरू किया गया है।
