देवशयनी से लेकर देवउठनी एकादशी तक योग निद्रा में रहेंगे श्री नारायण, जानें क्या है धार्मिक मान्यता…
हल्द्वानी, अमृत विचार। देवशयनी अथवा हरिशयनी एकादशी का व्रत मंगलवार 20 जुलाई को है। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरिशयनी एकादशी कहते है। हरिशयनी एकादशी तिथि से जगत के संचालक भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन करने चले जाते हैं। पंडित डॉ. नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि 19 जुलाई 2021 …
हल्द्वानी, अमृत विचार। देवशयनी अथवा हरिशयनी एकादशी का व्रत मंगलवार 20 जुलाई को है। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरिशयनी एकादशी कहते है। हरिशयनी एकादशी तिथि से जगत के संचालक भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन करने चले जाते हैं। पंडित डॉ. नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि 19 जुलाई 2021 सोमवार को रात 10:00 से 20 जुलाई मंगलवार को 07:17 तक एकादशी है। 20 जुलाई मंगलवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें।
देवशयनी एकादशी व्रत 20 जुलाई को रखा जाएगा और इस बार देवशयनी एकादशी के दिन दो शुभ योग बन रहे हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी, विष्णु-शयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से चातुर्मास की भी शुरूआत हो जाएगी, जिसमें कई प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।

= देवशयनी एकादशी मुहूर्त
एकादशी का शुभारंभ – रात 10:00 बजे से (जुलाई 19, 2021)
एकादशी तिथि समाप्त – शाम 07:17 बजे (जुलाई 20, 2021)
एकादशी व्रत पारण- सुबह 05:36 बजे से 08:21 बजे तक (जुलाई 21, 2021)
= इन शुभ संयोग में मनाई जाएगी देवशयनी एकादशी
डॉ. नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि इस साल देवशयनी एकादशी के दिन शुक्ल और ब्रह्म योग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र में इन योग को शुभ योगों में गिना जाता है। इस दौरान किए गए कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। इन योग में किए गए कार्य से मान सम्मान की प्राप्ति होती है।

= देवशयनी एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व
देवशयनी एकादशी की दो पौराणिक कथाएं हैं। पहली कथा के अनुसार शंखचूर नाम के असुर से भगवान विष्णु का लंबा युद्ध चला और आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान ने शंखचूर का वध कर दिया। इतने लंबे युद्ध को करते हुए भगवान बहुत थक गए और तब देवताओं ने उनसे आराम करने का आग्रह किया। इसके बाद भगवान विष्णु ने शिव जी को सृष्टि का कार्यभार सौंपा और चार विश्राम के लिए पाताल लोक में चले गए। तब से उस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाने लगा।चार माह बाद उनकी निद्रा खुली, जिस दिन भगवान जागे उस दिन को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। तब से आज तक देवशयनी से लेकर देवउठनी एकादशी तक शिव जी संसार को संभालते हैं और यह समय नारायण के विश्राम का माना जाता है।

वहीं, दूसरी कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर बलि से तीन पग भूमि मांगी, तब दो पग में पृथ्वी और स्वर्ग को श्री हरि ने नाप दिया और जब तीसरा पग रखने लगे तब बलि ने अपना सिर आगे रख दिया। भगवान विष्णु ने राजा बलि से प्रसन्न होकर उनको पाताल लोक दे दिया और उनकी दानभक्ति को देखते हुए वर मांगने को कहा। बलि ने कहा -‘प्रभु आप सभी देवी-देवताओं के साथ मेरे लोक पाताल में निवास करें’, और इस तरह श्री हरि समस्त देवी-देवताओं के साथ पाताल चले गए, यह दिन एकादशी (देवशयनी) का था।इससे लक्ष्मी मां दुखी हो गईं और भगवान विष्णु को वहां से मुक्त कराने के लिए एक गरीब स्त्री बनकर पाताल लोक पहुंच गईं। लक्ष्मी मां के दीन हीन अवस्था को देखकर बलि ने उन्हें अपनी बहन बना लिया। तब उन्होंने राजा बलि को राखी बांधी और कहा कि अगर तुम अपनी बहन को खुश देखना चाहते हो तो मेरे पति को मेरे साथ बैकुंठ विदा कर दो, बलि ने बहन की बात को टाला नहीं और श्रीहरि को बैकुंठ भेज दिया। तब भगवान विष्णु ने बलि के त्याग को देखकर कहा कि अब से आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तक वह हर साल पाताल में निवास करेंगे। तब से यह मान्यता प्रचलित हो गई।
