Ismail Meerthi

आग़ाज़-ए-इश्क़ उम्र का अंजाम हो गया…

आग़ाज़-ए-इश्क़ उम्र का अंजाम हो गया नाकामियों के ग़म में मिरा काम हो गया तुम रोज़-ओ-शब जो दस्त-ब-दस्त-ए-अदू फिरे मैं पाएमाल-ए-गर्दिश-ए-अय्याम हो गया मेरा निशाँ मिटा तो मिटा पर ये रश्क है विर्द-ए-ज़बान-ए-ख़ल्क़ तिरा नाम हो गया दिल चाक चाक नग़्मा-ए-नाक़ूस ने किया सब पारा पारा जामा-ए-एहराम हो गया अब और ढूँडिए कोई जौलाँ-गह-ए-जुनूँ सहरा …
साहित्य