रामपुर: जरूरतमंद न हार जाएं जिंदगी की जंग, चार ने किया देहदान तो 300 लोग कर चुके नेत्रदान
रामपुर, अमृत विचार। कौन कहता है कि इंसान अमर नहीं हो सकता, जरूर हो सकता है। इसके लिए अमृत पीने की जरूरत नहीं है। बस अंगदान जैसा पूण्य कार्य करना पड़ेगा। अपने देश में अंगदान के इंतजार में तमाम लोग जिंदगी की जंग हार जाते हैं। ऐसा न हो इसके लिए शहर में चार लोगों …
रामपुर, अमृत विचार। कौन कहता है कि इंसान अमर नहीं हो सकता, जरूर हो सकता है। इसके लिए अमृत पीने की जरूरत नहीं है। बस अंगदान जैसा पूण्य कार्य करना पड़ेगा। अपने देश में अंगदान के इंतजार में तमाम लोग जिंदगी की जंग हार जाते हैं। ऐसा न हो इसके लिए शहर में चार लोगों ने देहदान तो 300 लोगों ने नेत्रदान का संकल्प लिया है। इसके अलावा 17 लोग देहदान का संकल्प पत्र भर चुके हैं।
लोगों को अपने बहुमूल्य अंग दान करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है। हर साल, अंगों की अनुपलब्धता के कारण लगभग पांच लाख लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अंगदान एक ऐसा कार्य है जोकि, मरने के बाद इंसान को अमर बना देता है। रामपुर में बहुत लोगों ने मरणोप्तरांत नेत्रदान कर लोगों की अंधेरी दुनिया में उजाला भर दिया है। कई लोगों ने देहदान भी किया है। रानास के सेवा प्रभारी सतीश भाटिया बताते हैं कि रामपुर में पिछले 25 साल के दौरान करीब 300 लोगों ने मरणोप्तरांत नेत्रदान किए हैं। इनमें चार लोगों की मृत्यु के बाद देहदान कर दी गई है।
- मरणोप्तरांत नेत्रदाता- 300
- देहदान का संकल्प पत्र भरने वाले- 17
- देहदान करने वाले- 4
अब तक चार लोग कर चुके देहदान
समाजसेवी सतीश भाटिया बताते हैं क वर्ष 2014 में सबसे पहला देहदान जिला अस्पताल के निकट मोहल्ला चादरवाला बाग निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक ग्रीश चंद्र श्रीवास्तव का हुआ इसके बाद न्यू आवास विकास कालोनी निवासी जुगल किशोर जैन सेठी, पुरानी आवास विकास कालोनी निवासी शदर गुप्ता और मोहल्ला पीपल टोला की आशा गुप्ता ने देहदान किया है। सतीश भाटिया कहते हैं कि टीएमयू की ओर से देहदान करने वालों को डोनर कार्ड भी जारी कराए जा चुके हैं।
केस-1
बेटी ने लिवर देकर बचाया पिता का जीवन
न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के कर्मचारी हरीश कुमार को उनकी छोटी बेटी प्रिया सिंह ने वर्ष 2013 में लिवर प्रत्यारोपण कराकर अपने पिता का जीवन बचा लिया। हरीश कुमार बताते हैं कि उस वक्त उनकी छोटी बेटी की आयु 19 वर्ष थी। बेटी ने उस समय कहा कि लिवर तो मैं ही दूंगी आपको! आप परेशान क्यों होते हैं। एक 19 वर्ष की लड़की में इतना साहस देखकर सभी लोग अचंभित रहे गए। इसके बाद 16 अप्रैल 2013 को मेरा लिवर प्रत्यारोपण हुआ संदेश दिया कि अपने अंगों से लोगों को जीवनदान दें। किसी को जीवन देने से बड़ा कोई पुण्य नहीं होता। इस समय हरीश कुमार की बेटी प्रिया सिंह इंडियन बैंक में सहायक प्रबंधक है।
केस-2
बेटे ने बचा ली पिता की जिंदगी
राहे मुर्तजा निवासी विजारत अली खान लंबे समय से लिवर की बीमारी से पीड़ित थे। वर्ष 2015 में लिवर डैमिज होने के कारण डॉक्टर ने उन्हें जीवित रहने के लिए लिवर ट्रांसपेलेंट ही अंतिम विकल्प बताया। बेटा हसनात आगे आया। उसने अपना 60 प्रतिशत लिवर अपने पिता को वर्ष 2015 में गुरुग्राम के एक अस्पताल में प्रत्यरोपित करा दिया। प्रत्यारोपण को पांच साल पूरे होने पर ट्रैन्स्प्लैंट डिपार्टमेंट के डायरेक्टर पद्मश्री डॉ. एस सोईन ने बधाई देते हुए ट्वीट किया।
यह भी जानें
दान किए जा सकने वाले अंग गुर्दे, फेफड़े, दिल, आंख, यकृत, पैनक्रिया, कॉर्निया, छोटी आंत, त्वचा के ऊतक, हड्डी के ऊतक, हृदय वाल्व और नस हैं। भारत में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम को वर्ष 1994 में पारित किया गया था। इसे वर्ष 2011 में संशोधित किया गया, इस प्रकार मानव प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम 2011 के रूप में लाया गया। यह मानव अंगों को हटाने और इसके भंडारण के लिये विभिन्न नियम प्रदान करता है। कई बेटे और बेटियों ने अपने माता-पिता को अंग दान करके उन्हें नया जीवन दिया।
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