इन तीन मंदिरों में दिन में मनाई जाती है जन्माष्टमी, जानें क्यों?
मथुरा। राधारानी की नगरी वृन्दावन के तीन मन्दिरों राधारमण, राधा दामोदर और शाह जी मन्दिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दिन में मनाने की तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं। इन तीनों मन्दिरों में ठाकुर जी के अभिषेक के बाद चरणामृत का वितरण भक्तों में किया जाता है। इस आयोजन में अधिक मात्रा में गाय के …
मथुरा। राधारानी की नगरी वृन्दावन के तीन मन्दिरों राधारमण, राधा दामोदर और शाह जी मन्दिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दिन में मनाने की तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं। इन तीनों मन्दिरों में ठाकुर जी के अभिषेक के बाद चरणामृत का वितरण भक्तों में किया जाता है। इस आयोजन में अधिक मात्रा में गाय के दूध की जरुरत होती है। राधारमण मन्दिर में तो 27 मन दूध दही की जरूरत होती है। इसलिए मंदिर सेवायत और कर्मचारी जिले के विभिन्न भागों में जाकर आवश्यकता से अधिक दूध की एक प्रकार से एडवांस बुकिंग कर रहे हैं। जिससे दूध की किसी प्रकार की कमी न हो। कुछ मात्रा में दूध को एक दिन पहले खरीदकर उसका दही जमा दिया जाता है। इन मंदिरों में अभिषेक के लिए गाय के घी का ही प्रयोग होता है, इसलिए सामग्री के इकट्ठा करने और ठाकुर जी के आभूषणों को साफ करने का काम अभी से शुरू हो गया है।
राधारमण मंदिर के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी एक प्रकार से श्यामसुन्दर की साल गिरह का दिन है। इसलिए लाला को रात में जगाकर उनका जन्म मनाना ठीक नहीं है। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण का अवतरण तो आज से लगभग सवा पांच हजार साल पहले ही हो गया था, इसलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ,एक प्रकार से श्रीकृष्ण के जन्म की साल गिरह है। इस परंपरा की शुरूआत गोपाल भट्ट गोस्वामी ने की थी जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ठाकुर जी उनके गंडगी नदी में स्नान करते समय स्वयं प्रकट हुए थे और राधारमण मंदिर का विगृह स्वयं प्राकट्य है। जिस प्रकार बच्चे की साल गिरह पर उसे अच्छे से अच्छे कपड़े पहनाए जाते हैं और अच्छा भोजन, पकवान बनाया जाता है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण जन्म पर मंदिर को सजाने और नाना प्रकार के व्यंजन का भोग लगाने की परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है।
दिनेश चन्द्र गोस्वामी के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सबसे पहले अभिषेक में भाग लेने वाले गोस्वामी संकीर्तन के मध्य यमुना जल लेकर आते हैं और पट खुलते ही अभिषेक शुरू हो जाता है । सबसे पहले ठाकुर जी का यमुना जल से अभिषेक करते हैं, इसके बाद 27 मन दूध, दही, घी, बूरा, शहद, औषधियों, सर्वोषधियों, महौषधियों, फूल फल और अष्ट कलश से तीन घंटे से अधिक समय तक घंटे घडिय़ाल और शंखध्वनि से अभिषेक होता है।
सबसे अंत में स्वर्ण पात्र में केसर घोलकर ठाकुर जी का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद मंदिर के गर्भ गृह पर पर्दा डालकर ठाकुर जी का अंदर श्रंगार करते हैं। बालस्वरूप में सेवा होने के कारण पुनः जब दर्शन खुलते हैं तो सारे कार्यक्रम उसी प्रकार चलते हैं जैसे लाला का आज ही जन्म हुआ हो। ठाकुर जी को पहले यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है इसके बाद उन्हें माला धारण कराई जाती है और ठाकुर को न केवल काजल लगाया जाता है बल्कि राई नोन से उनकी नजर उतारते हैं। इसके बाद गेास्वामी वर्ग लाला की दीर्घ आयु के लिए उन्हें आशीर्वाद देता है ‘माई तेरो चिर जीवे गोपाल ।
