सीतापुर: कानूनी फेर में फंसा चीनी मिल का संचालन, मुश्किलों में किसान, जानें मामला
सीतापुर। बंद हो चुकी कमलापुर चीनी मिल के नीलाम होने के बाद अब उसके नए मालिकों और गन्ना विभाग के बीच चल रही रस्साकशी का दंश क्षेत्र के हजारों गन्ना किसान झेल रहे हैं। हालात ये हैं कि किसान यदि अन्य चीनी मिलों को गन्ना बेचते हैं तो उनकी कमाई पर बढ़े किराए, घटतौली जैसी …
सीतापुर। बंद हो चुकी कमलापुर चीनी मिल के नीलाम होने के बाद अब उसके नए मालिकों और गन्ना विभाग के बीच चल रही रस्साकशी का दंश क्षेत्र के हजारों गन्ना किसान झेल रहे हैं। हालात ये हैं कि किसान यदि अन्य चीनी मिलों को गन्ना बेचते हैं तो उनकी कमाई पर बढ़े किराए, घटतौली जैसी समस्याओं का ग्रहण लग जाता है। ऐसी स्थित में कई बार किसानों को गुड़बेलों व दलालों के हाथ अपना गन्ना घाटा उठाकर मजबूरन बेंचना पड़ रहा है। चीनी मिल के नए खरीद्दारों और गन्ना विभाग के अपने-अपने तर्क हैं। लेकिन इन तर्क और कुर्तकों के बीच मुश्किलों का सामना हजारों गन्ना किसानों को करना पड़ रहा है। आए दिन किसान बकाया भगुतान व चीनी मिल चालू कराने की मांग को लेकर जिले के जिम्मेदार अफसरों की ड्योढ़ी पर माथा टेकते हैं, लेकिन उनके हाथ सिर्फ आश्वासन ही लगता है।
दरअसल कमलापुर चीनी मिल 2011 में बंद हो गया था। इस बीच चीनी मिल पर गन्ना किसानों का साल 2008 से 2011 तक करीब 14 करोड़ रुपए गन्ने का भुगतान बकाया हो गया था। जो अब ब्याज सहित करीब 28 करोड़ हो गया है। मिल बंद होने के बाद बैंकों ने अपना कर्ज वापस लेने के लिए दबाव बढ़ाया तो कलकत्ता हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से मिल नीलाम हो गई। मिल की संपत्तियां नीलाम कर बैंकों को तो भुगतान दे दिया गया, लेकिन क्षेत्र के गन्ना किसानों का करोड़ों का भुगतान अटक गया। गन्ना किसान अपना भुगतान मांग रहे हैं।
लेकिन अभी तक न ही गन्ना विभाग किसानों की समस्याओं का हल निकाल पाया और न ही कमलापुर गन्ना समिति ही किसानों के लिए कुछ खास कर पाई। ऐसी स्थित में जब चीनी मिल को अब दूसरी कंपनी ने खरीद लिया तो किसानों में एक नई उम्मीद जगी। उन्हें महसूस हुआ कि यदि चीनी मिल पुन: शुरू हो जाएगी तो कम से कम उनका गन्ना तो अच्छे दामों में बिकेगा। उधर चीनी मिल को खरीदने वाली कंपनी एनआर इंफ्रा कॉन ने किसानों व गन्ना समिति को यह भरोसा भी दिया कि यदि चीनी मिल चालू हो जाएगी तो वह कुछ सालों में बकाया भुगतान भी कर देगी, लेकिन चीनी मिल चालू होने में शासन स्तर से रोड़ा अटका है।
ऐसी स्थित में किसान तो परेशान हैं ही अब चीनी मिल खरीदने वाली कंपनी भी मुश्किल में है। कंपनी के सूत्रों का दावा कि कबाड़ बन चुकी चीनी मिल को चालू करने के लिए करीब सात करोड़ से मरम्मत कराई गई है, पर अब गन्ना विभाग व शासन स्तर से चीनी मिल चालू करने की इजाजत नहीं दी जा रही है। ऐसे हालात चीनी मिल कंपनी और किसान दोनों ही परेशान हैं। हालांकि गन्ना विभाग के अपने तर्क हैं।
क्या कहते हैं जिला गन्ना अधिकारी?
जिला गन्ना अधिकारी संजय सिसोदिया का कहना है कि चीनी मिल पर पुराना बकाया है। मिल के खरीददार वह बकाया देना नहीं चाहते हैं। इनके पास न तो लाइसेंस है और न ही केंद्र सरकार से एनओसी मिली है। जब तक यह सब नहीं होगा, तब तक मिल चलाने की स्थित में नहीं आ पाएंगे। जब तक मिल मालिक किसानों का पैसा नहीं देंगे, तब तक विभाग एनओसी नहीं देगा। इनके लाइसेंस की प्रक्रिया राज्य सरकार में पेंडिंग है।
महोली चीनी मिल को भी चालू कराने की हो रही मांग
जिले में मौजूदा वक्त में बिसवां, रामगढ़, हरगांव व जवाहरपुर चीनी मिल चल रही हैं। लेकिन कमलापुर के अलावा महोली चीनी मिल भी वर्षो से बंद पड़ी है।कमलापुर चीनी मिल चालू कराने के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन सूत्र बताते हैं कि महोली चीनी मिल को लेकर सबकुछ ठंडे बस्ते में है। महोली चीनी मिल का कभी नाम हुआ करता था। जिले के हजारों किसानों को फायदा होता था, लेकिन यह मिल भी बंद है। मिल बंद होने के बाद से अब तक क्षेत्र के लोग चीनी मिल पुन: चालू कराने की मांग कर रहे हैं।
गन्ना विभाग पर लग रहे रोड़ा अटकाने के आरोप
कमलापुर चीनी मिल के पुन: चालू कराए जाने के मामले में गन्ना विभाग पर भी गंभीर आरोप लग रहे हैं। चीनी मिल के सूत्रों का दावा है कि विभागीय जिम्मेदार जानबूझ कर रोड़ा अटका रहे हैं। जब चीनी मिल के मालिकान मिल चालू होने के बाद कुछ वर्षो के भीतर किसानों का गन्ना भुगतान कर देने का वादा कर रहे हैं तो मिल चालू करने की इजाजत हो जानी चाहिए, लेकिन विभाग के जिम्मेदार मिल चालू कराने में दिलचस्पी न दिखा कर और रोड़े अटका रहे हैं। ऐसे में चीनी मिल व किसानों को दिक्कतें हो रही हैं। हालांकि जिम्मेदार विभागीय अधिकारी इन आरोपों का खंडन कर रहे हैं।
