अंटार्कटिका को जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले मिला ‘ग्लासगो ग्लेशियर’

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रोम। स्कॉटलैंड में रविवार से शुरू होने वाले जलवायु सम्मेलन से पहले ब्रिटेन ने दुनिया के लिए इसके व्यापक निहितार्थ को प्रभावी प्रतीक के तौर पर दर्शाने के मकसद से अंटार्कटिका में बर्फ के एक पतले टुकड़े का नाम ‘ग्लासगो ग्लेशियर’ रखा है। सीओपी26 शिखर सम्मेलन के लिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ …

रोम। स्कॉटलैंड में रविवार से शुरू होने वाले जलवायु सम्मेलन से पहले ब्रिटेन ने दुनिया के लिए इसके व्यापक निहितार्थ को प्रभावी प्रतीक के तौर पर दर्शाने के मकसद से अंटार्कटिका में बर्फ के एक पतले टुकड़े का नाम ‘ग्लासगो ग्लेशियर’ रखा है। सीओपी26 शिखर सम्मेलन के लिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ विश्व के 120 से अधिक नेता ग्लासगो में शामिल होंगे।

ब्रिटेन वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फारेनहाइट) तक सीमित करने के लिए 2015 में पेरिस में सहमत लक्ष्य को पूरा करने के अंतिम अवसरों में से एक बता रहा है। इंग्लैंड में लीड्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के गेट्ज बेसिन में ग्लेशियरों की एक श्रृंखला का अध्ययन किया है और पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण 1994 और 2018 के बीच जमीन से समुद्र तक की उनकी यात्रा की गति में औसतन 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 315 गीगाटन (347 अरब अमेरिकी टन) बर्फ बहा रही है, जिससे वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि हो रही है। ब्रिटिश अंटार्कटिका

क्षेत्र में स्थित ग्लेशियरों के नाम उन शहरों के नाम पर रखे जाएंगे, जिन्होंने रियो, क्योटो, पेरिस और ग्लासगो सहित जलवायु सम्मेलनों, रिपोर्ट या संधियों की मेजबानी की है। जॉनसन ने कहा, ”प्रकृति के इस चमचमाते विशालकाय हिस्से का नाम उस शहर के नाम पर रखा जाएगा जहां अगले सप्ताह मानव जाति धरती के भविष्य के लिए लड़ने के इरादे से एकत्रित होगी, जो हमें इस बात की याद दिलाती है कि हम क्या संरक्षित करने के लिए काम कर रहे हैं।”

इस सप्ताह के अंत में रोम में होने वाली बैठक में 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के समूह के नेताओं से कार्बन कटौती प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने का आग्रह करते हुए जॉनसन ने कहा कि ग्लासगो बैठक ”1.5 डिग्री के लक्ष्य को बरकरार रखने के लिए हमारे सर्वोत्तम अवसर का प्रतिनिधित्व करती है।” जॉनसन भारत, ऑस्ट्रेलिया और चीन सहित जी-20 के कुछ सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों के नेताओं पर उत्सर्जन में तेज और व्यापक कटौती करने के लिए दबाव बना रहे हैं।

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