अयोध्या: जिले की सियासत में सेन परिवार की है सबसे मजबूत जड़, ये रहे कारण…

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अयोध्या। अयोध्या जिले की राजनीति की चर्चा मित्र सेन परिवार के बिना अधूरी लगती है। विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा या फिर छोटी पंचायत का चुनाव। हर चुनाव में सेन परिवार का राजनीतिक रसूख सियासत के पटल पर आ जाता है। सेन परिवार के राजनीतिक रसूख को किसी और ने नहीं बल्कि कद्दावर राजनीतिक रहे …

अयोध्या। अयोध्या जिले की राजनीति की चर्चा मित्र सेन परिवार के बिना अधूरी लगती है। विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा या फिर छोटी पंचायत का चुनाव। हर चुनाव में सेन परिवार का राजनीतिक रसूख सियासत के पटल पर आ जाता है। सेन परिवार के राजनीतिक रसूख को किसी और ने नहीं बल्कि कद्दावर राजनीतिक रहे मित्रसेन यादव ‘ बाबू जी’ ने सींचा।

मित्र सेन यादव को राजनीतिक सरगर्मी में हमेशा किया जाता है याद

बाबू जी की बदौलत ही सिर्फ सेन परिवार ही नहीं तमाम ऐसे रहे जिन्होंने उनसे राजनीति का ककहरा सीख कर सियासत में मुकाम हासिल किया। अगर यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अयोध्या जिले की सियासत में मित्र सेन यादव यानि बाबू जी अपने आप में राजनीति की एक वृहद पाठशाला थे। वे आज नहीं हैं, लेकिन हर तरह की राजनीतिक सरगर्मी में याद किए जाते हैं।

जिले की राजनीति में बाबू जी की अखड़मिजाजी भी हमेशा चर्चा का सबब रही है। एक व्यक्ति और राजनेता दोनों के ही रूप में मित्र सेन यादव उर्फ बाबू जी ने अपनी एक अलग छाप छोड़ी। अब जब विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है ऐसे में बाबू जी की यादें फिर ताजा हो उठी है।

बाबू जी ने नाम से मशहूर थे मित्रसेन यादव

जिले की राजनीति में साढे चार दशक तक बाबूजी के नाम से मशहूर रहे मित्रसेन यादव और  सेन परिवार का सियासत में जो दबदबा सत्तर के दशक में बना था वह आज तक बरकरार है। इस बार विधानसभा चुनाव में भी इस परिवार की दावेदारी और उनके सियासी रसूख से इनकार नहीं किया जा सकता है। सूबे में सत्ता किसी दल की हो लेकिन सत्ता के गलियारों में बाबूजी के नाम से मशहूर मित्रसेन यादव के सियासी रसूख की अनदेखी कोई नहीं कर सकता था।

70 के दशक से लेकर आज तक शायद ही कोई ऐसा चुनाव रहा हो जब सेन परिवार की नुमाइंदगी सियासत में न रही हो। समाज के वंचित वर्गों के लिए संघर्ष की सियासत के रूप में जाने जाने वाले मित्रसेन यादव अलग-अलग दलों के टिकट पर पांच बार विधायक व तीन बार सांसद निर्वाचित हुए। मित्रसेन यादव के राजनीतिकरण कौशल का ही परिणाम रहा कि उनके कार्यकर्ता रहे चौधरी महेंद्र प्रताप सिंह की बहू जिले की प्रथम नागरिक  के रूप में पदस्थापित हुई। मालती सिंह को उन्होंने अपने राजनीतिक कौशल से जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर कब्जा दिलाया था।

कम्युनिष्ट पार्टी से की थी बाबू जी ने सियासत की शुरुआत

सियासत के धुरंधर मित्रसेन यादव ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट से अपनी राजनीति की शुरुआत की। जीवन के अंतिम दिनों तक विधायक के पद पर बने रहे। अब उनके पुत्र पूर्व मंत्री आनंद सेन यादव उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी पुत्र वधुएं  जिला पंचायत और ब्लाक प्रमुख के पद पर विजय श्री प्राप्त कर चुकी है। इतना ही नहीं उनके पौत्र अंकुर सेन यादव हरिग्टनगंज से ब्लाक प्रमुख है। बाबू जी का गांव भिटारी पूरे जिले में हमेशा अपने राजनीतिक वर्चस्व की वजह से चर्चा में बना रहता है।

बाबू जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

खांटी कम्युनिस्टी रहे मित्रसेन यादव ने 1966 में राजनीति में प्रवेश किया और फिर कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। भारतीय पहली बार  1974 और फिर 1985  ,1989 वें चुनाव जीते और विधायक बने। जीवन के अंतिम समय में मिल्कीपुर विधानसभा सीट आरक्षित हो जाने के बाद मित्रसेन यादव बीकापुर से विधायक चुने गए।

फैजाबाद संसदीय सीट कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ के 1989 में उन्होंने जीत दर्ज की। जिसके बाद 1998 और 2000 में भी फैजाबाद लोकसभा से निर्वाचित होकर दिल्ली पहुंचे। श्री यादव का ही जिले में इतना राजनीतिक रसूख रहा कि उनसे राजनीति का ककहरा सीखने वाले रामचंद्र यादव भी उनके आशीर्वाद से विधानसभा के उपचुनाव में विधायक बने। तब से आज तक  लगातार विधायक बनते चले आ रहे हैं।

मित्रसेन यादव की खूबी ही थी कि वह चुनाव ज्यादातर मामूली मतों के अंतर से जीत जाते थे। यहां तक कि उन्होंने रामलहर में भगवा रथ पर सवार विनय कटियार जैसे योद्धा को हराकर भाजपा के भगवा किले को ध्वस्त किया था। विधानसभा चुनाव की तैयारियों के दौरान मित्र सेन यादव समर्थकों की आज भी एक बहुत बड़ी फौज है। इसी वजह से सियासत के बड़े-बड़े सूरमा भी सेन परिवार को नजरअंदाज नहीं कर पाते हैं। उनका गृह क्षेत्र हैरिंग्टनगंज आज भी उनके नाम और परिवार की आवाज के आधार पर ही वोट करने के लिए जाना जाता है।

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