Women’s Day Special : बेसहारों की बैसाखी हैं दिव्यांग रुचि चतुर्वेदी, कर रही हैं न्यायिक सेवा की तैयारी

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मुरादाबाद/अमृत विचार। ऊर्जा से भरा चेहरा, आवाज दमदार, बस इसकी आहट हो जाए कि कोई परेशान है। बुजुर्ग है और आबला तो फिर इनका कमाल देखिए। यह भूल जाती हैं कि हम दिव्यांग हैं। सामान्य आदमी की चाल से अधिक गति से बैसाखी के सहारे दौड़ पड़ती हैं। नाम है रुचि चतुर्वेदी। निवास है रेलवे …

मुरादाबाद/अमृत विचार। ऊर्जा से भरा चेहरा, आवाज दमदार, बस इसकी आहट हो जाए कि कोई परेशान है। बुजुर्ग है और आबला तो फिर इनका कमाल देखिए। यह भूल जाती हैं कि हम दिव्यांग हैं। सामान्य आदमी की चाल से अधिक गति से बैसाखी के सहारे दौड़ पड़ती हैं। नाम है रुचि चतुर्वेदी। निवास है रेलवे हरथला कॉलोनी।

मूल रूप से मथुरा के रहने वाले चतुर्वेदी परिवार चौथी पीढ़ी के सदस्य रुचि एमए और एलएलबी की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं। संगीत में प्रभाकर की उपाधि कृपा कर चुकी हैं। साल 2011 में सिलाई का प्रशिक्षण लिया, उसके बाद इन पर ड्रेस कटिंग और सिलाई का भूत सवार हुआ। किसी फैशन डिजाइनर कपड़े देख लिए तो फिर उसकी कॉपी कर डालती हैं। इंटरनेट पर देखकर उसमें अपने हाथ का हुनर भर देंती हैं।

रेलवे में चालक के पद पर तैनात रमेश चंद्र चतुर्वेदी की बेटी के हौसले बुलंद हैं। पीसीएस (जे) की तैयारी में जुटीं रुचि बेसहारों की सहारा हैं। यानी कोई बीमार है, सरकारी मदद की दरकार है तो उसकी आवाज इनके कांनों तक पहुंचनी चाहिए, फिर उसके बाद रुचि का सफर शुरू हो जाता है। बताती हैं कि मेरे परिवार के लोग मुझे हौसला देते हैं। पिता के निधन के बाद चाचा महेश चंद्र चतुर्वेदी ने परवरिश की।

परिवार का मोटिवेशन मिला है तो मुझमें शारीरिक दिव्यांगता को मात देने का हौसला पैदा हो गया। मैं जन्म से दिव्यांग नहीं हूं। लेकिन, बीमारी की मारी हूं। इसीलिए लोगों की मदद के लिए दौड़ पड़ती हूं। ताकि समाज को विश्वास हो कि पंख से नहीं हौसलों से उड़ान होती है।

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