तमिलनाडु के मंत्री ने हिन्दी भाषियों का किया अपमान : डॉ. दिनेश शर्मा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री पोनमुडी द्वारा हिन्दी के संबंध में की गई टिप्पणी को ओछी मानसिकता और अल्पज्ञान का परिचायक बताया है। उन्होंने कहा कि भाषा को न तो सीमाओं में बांटा जा सकता है और ना ही सीमाओं में बांधा जा सकता …
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री पोनमुडी द्वारा हिन्दी के संबंध में की गई टिप्पणी को ओछी मानसिकता और अल्पज्ञान का परिचायक बताया है। उन्होंने कहा कि भाषा को न तो सीमाओं में बांटा जा सकता है और ना ही सीमाओं में बांधा जा सकता है। भाषा को किसी की वकालत की आवश्यकता नही होती।
किसी व्यक्ति का मानसिक उन्नयन उसके ज्ञान पर होता है। ज्ञानवान व्यक्ति ही अपनी मंजिल हांसिल करता है। भाषा की उपयोगिता वही समझ सकता है जिसने भाषा के महत्व को समझा है। जिस व्यक्ति को जितनी अधिक भाषा का ज्ञान होता है उसकी वाणी उतनी ही प्रभावशाली लगती है।
डॉ. शर्मा ने कहा कि हिंदी के विरोध से अल्पकालीन राजनैतिक लाभ तो मिल सकता है लेकिन ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के संकल्प को पूरा नही किया जा सकता। पूर्व प्रधानमंत्री स्व नरसिंहाराव को नौ भारतीय व सात विदेशी भाषाओं का ज्ञान था, यही कारण था कि वे जिस सूबे में जाते थे उसके लोगों से उन्ही की भाषा में संवाद करके वे उसकी आत्मीयता बटोर लेते थे।
हिन्दी भाषा का शब्दकोष संकुचित नही है यही कारण उसने अवधी, ब्रजभाषा और यहां तक दक्षिण भारत की विभिन्न भाषाओं को अंगीकार इस प्रकार किया है कि बोलचाल मे तो वे हिन्दी से अलग मालूम नही पड़ते। हिन्दी के इस विशाल दृष्टिकोण के कारण ही केन्द्र सरकार हिन्दी के साथ ही देश की सभी भाषाओं को महत्व दे रही है। तमिलनाडू के मंत्री का हिन्दी के संबंध में दिया गया बयान न केवल बहुसंख्यक हिन्दीभाषियों का अपमान है बल्कि उस भाषा का भी अपमान है जिसे ‘भारत माता की बिन्दी’ कहा जाता है।
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