बिनसर महादेव मंदिर अपने पुरातात्विक महत्व और वनस्पति के लिए है लोकप्रिय

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हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड के रानीखेत से तकरीबन 20 किमी दूरी पर कुंज नदी के तट पर करीब पांच हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बिनसर महादेव मंदिर एक लोकप्रिय हिंदू मंदिर है । हरे-भरे जंगल और उस पर देवदार का जंगल बरबस ही आंखों को सुकून देने वाला मंजर देखने को मिलता है। हिंदू …

हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड के रानीखेत से तकरीबन 20 किमी दूरी पर कुंज नदी के तट पर करीब पांच हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बिनसर महादेव मंदिर एक लोकप्रिय हिंदू मंदिर है । हरे-भरे जंगल और उस पर देवदार का जंगल बरबस ही आंखों को सुकून देने वाला मंजर देखने को मिलता है। हिंदू भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10 वीं सदी में किया गया था। महेशमर्दिनी, हर गौरी और गणेश के रूप में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ निहित, इस मंदिर की वास्तुकला देखने लायक है।

आस्था और श्रद्धा के केंद्र इस मंदिर को भगवान शिव और माता पार्वती की पावन स्थली मानी जाती है। बिनसर महादेव मंदिर के इतिहास के बारे में हलांकि लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है फिर भी कई शोधकर्ताओं, तथ्यों और मिथकों के द्वारा इस मंदिर के इतिहास को टटोलने की कोशिशें की जाती रही हैं। यह मंदिर अपने पुरातात्विक महत्व और वनस्पति के लिए लोकप्रिय है। स्थानीय लोगों की मानें तो मंदिर को पांडवो के द्वारा बनाया गया था, यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक रात में किया गया था। दूसरी और एक जनश्रुति है कि निकटवर्ती सौनी गांव में मनिहार लोग रहते थे।

उनमें से एक की दुधारु गाय रोजाना बिनसर क्षेत्र में घास चरने जाती थी । घर आने पर इस गाय का दूध निकला रहता था। एक दिन एक मनिहार ने इस रहस्य से पर्दा उठाने की सोची और वह गाय का पीछा करने चल दिया और उसने देखा कि गाय जंगल में एक शिला के ऊपर खड़ी होकर अपने दूध की धार छोड़ रही थी और शिला पर दूध गिरते ही वह गायब हो जा रहा था, इस बात पर गुस्साए मनिहार ने गाय को धक्का देकर कुल्हाड़ी के उल्टे हिस्से से शिला पर प्रहार कर दिया, इससे शिला से रक्त की धार बहने लगी। उसी रात एक बाबा ने सपने में आकर मनिहारों को गांव छोड़ने को कहा और वह गांव छोड़कर रामनगर चले गए। वहीं एक दूसरी कहानी है कि सौनी बिनसर के निकट किरोला गांव में एक 65 वर्षीय नि:संतानी वृद्ध थे। उन्हें सपने में एक साधु ने दर्शन देकर कहा कि कुंज नदी के तट की एक झाड़ी में शिवलिंग पड़ा है। उसे प्रतिष्ठित कर मंदिर का निर्माण करो।

उस व्यक्ति ने आदेश पाकर मंदिर बनाया और उसे पुत्र प्राप्त हो गया। पूर्व में इस स्थान पर छोटा सा मंदिर स्थापित था। वर्ष 1959 में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा से जुड़े ब्रह्मलीन नागा बाबा मोहन गिरि के नेतृत्व में इस स्थान पर भव्य मंदिर का जीर्णोद्घार शुरू हुआ। इस मंदिर में वर्ष 1970 से अखंड ज्योति जल रही है। मंदिर की व्यवस्थाएं देख रहे 108 श्री महंत राम गिरि महाराज ने बताया कि यहां श्री शंकर शरण गिरि संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की गई है।

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