महंगाई का दबाव

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भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। परंतु वैश्विक स्थितियों के चलते घरेलू स्तर पर कई चुनौतियां भी हैं। आर्थिक वृद्धि को गति देने के साथ महंगाई पर काबू पाना बड़ी चुनौती है। लगातार बढ़ती महंगाई चिंताजनक है। अर्थव्यवस्था पर महंगाई का दबाव बरकरार है। रूस-यूक्रेन युद्ध से तनाव के कारण मुद्रास्फीति को लेकर अनिश्चितता बनी …

भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। परंतु वैश्विक स्थितियों के चलते घरेलू स्तर पर कई चुनौतियां भी हैं। आर्थिक वृद्धि को गति देने के साथ महंगाई पर काबू पाना बड़ी चुनौती है। लगातार बढ़ती महंगाई चिंताजनक है। अर्थव्यवस्था पर महंगाई का दबाव बरकरार है। रूस-यूक्रेन युद्ध से तनाव के कारण मुद्रास्फीति को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। मौद्रिक और राजकोषीय प्राधिकरण दोनों बढ़ती महंगाई को काबू में लाने और आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए कदम उठा रहे हैं।

बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक ने बढ़ती मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 0.5 प्रतिशत बढ़ाकर 4.9 प्रतिशत कर दिया। इससे पहले, 4 मई को आरबीआई ने अचानक से रेपो दर में 0.4 प्रतिशत की वृद्धि की थी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि रिजर्व बैंक के रेपो रेट बढ़ाने के इस फैसले से आम आदमी पर क्या असर पड़ने वाला है। रेपो रेट बढ़ाने का असर बैंकों के करोड़ों ग्राहकों पर पड़ेगा। आरबीआई के इस कदम से ऋण महंगा होगा और कर्ज की मासिक किस्त यानी ईएमआई बढ़ेगी। अब कर्ज लेने वालों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

इस समय रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति को लेकर अधिक चिंतित है। इसका संकेत मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाए जाने से मिलता है। 2022-23 के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत किए जाने के बारे में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि उन्हें भरोसा है कि केंद्रीय बैंक के कदमों से महंगाई को नीचे लाने में मदद मिलेगी। हालांकि अटकलों के विपरीत केंद्रीय बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में वृद्धि नहीं की है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का मुख्य ध्यान मुद्रास्फीति के प्रबंधन पर रहा है।

विशेषज्ञों ने मौद्रिक घोषणा को आक्रामक करार दिया है। उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष के अंत तक नीतिगत दर रेपो महामारी-पूर्व के स्तर से अधिक यानी छह प्रतिशत के पास होगी यानि नीतिगत दरें अभी और बढ़ेंगी। साथ ही केंद्रीय बैंक के नीतिगत रुख से संकेत मिलता है कि वृद्धि प्रक्रिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती मुद्रास्फीति है और मुद्रास्फीति का जल्द हल निकालना जरूरी है। हालांकि, सरकार के आपूर्ति व्यवस्था में सुधार के कदमों से इसे नीचे लाने में मदद मिलेगी।

ध्यान रहे रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति पर विचार करते समय मुख्य रूप से खुदरा महंगाई दर को ध्यान में रखता है। खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में आठ साल के उच्चस्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। जबकि केंद्रीय बैंक को खुदरा महंगाई दो से छह प्रतिशत के दायरे में रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। अब एमपीसी को प्रोत्साहनों को वापस लेने व चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

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