मथुरा: भगवान रंगनाथ को गर्मी से राहत देने के लिये किया गया यह खास इंतजाम
मथुरा। गर्मी से है सब का बुरा हाल। दिन शुरू होते ही सूरज की तपन बढ़ती जाती है। इस भीषण गर्मी में भक्त अपने भगवान को गर्मी से राहत देने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं। मथुरा में कहीं भगवान का शीतल जल और चंदन-केसर से अभिषेक किया जा रहा है, तो कहीं फूलों …
मथुरा। गर्मी से है सब का बुरा हाल। दिन शुरू होते ही सूरज की तपन बढ़ती जाती है। इस भीषण गर्मी में भक्त अपने भगवान को गर्मी से राहत देने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं। मथुरा में कहीं भगवान का शीतल जल और चंदन-केसर से अभिषेक किया जा रहा है, तो कहीं फूलों के बंगले के बीच विराजमान कराया जा रहा है।
दक्षिण भारतीय शैली के विशाल रंगनाथ मंदिर में भगवान को इस भीषण गर्मी से राहत देने के लिए इन दिनों विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं। मंदिर के पुजारी भगवान का अभिषेक कर रहे हैं, तों कहीं फूलों पर विराजमान कराया जा रहा है । उत्सव पांच दिवसीय वसंत का हो रहा आयोजन आराध्य को इस भीषण गर्मी से राहत देने के लिए वसंत उत्सव का आयोजन रंगनाथ मंदिर में किया जा रहा है। पूरे धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान के साथ पांच दिवसीय वसंतोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। श्री रामानुज सम्प्रदाय की परंपरा के अनुसार श्री रंग मंदिर में हर दिन उत्सव होते हैं।
भगवान को बगीची में विराजित किया जाता है। भगवान को गर्भगृह से निकालकर बगीची में शुक्रवार को रखा गया। परिसर के चारों तरफ खस की टटिया से घिरे परिसर में विराजित ठाकुर जी के विग्रह का शीतल जल से अभिषेक किया गया। भगवान को गर्मी से राहत देने के लिए कपूर, केसर मिला चंदन लगाया जाता है। पीले सूती वस्त्र ठाकुर जी को धारण कराकर सुगंधित पुष्पों की माला पहनाई जाती है। इसके साथ ही शीतल पेय पदार्थ अर्पित किए जाते हैं। शाम को सवारी निकलती है
शनिवार को होगा वसंतोत्सव का समापन सेवायत रघुनाथ स्वामी ने बताया। हर दिन इसमें ठाकुर जी के समक्ष बसंत राग का गायन किया जाता है। इसी दौरान आराध्य का विशेष अभिषेक किया जाता है। शाम के समय पालकी में विराजमान होकर भगवान मंदिर प्रांगण में भ्रमण करते हैं।
मंदिर करीब 178 साल पुराना है
ठाकुर जी का श्री रंगनाथ मंदिर करीब 178 साल पुराना है। संत रंगदेशिक महाराज की प्रेरणा से दक्षिण की वैदिक भूमि से ब्रज में भक्ति की भूमि पर साधना करने आए मथुरा के भक्त राधा कृष्ण, लक्ष्मी चंद और गोविंद दास ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। संवत 1901 से प्रारंभ हुए विशालकाय मंदिर का निर्माण 1906 में पूर्ण हुआ था।
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