चुनाव सुधार की ओर

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स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आत्मा हैं। देश में चुनाव सुधार की दिशा में किए जा रहे प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को आगाह किया है कि मतदाताओं को रिझाने के लिए खोखले चुनावी वायदें न करें। देश के छह राज्यों में सात विधानसभा सीटों के लिए उप …

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आत्मा हैं। देश में चुनाव सुधार की दिशा में किए जा रहे प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को आगाह किया है कि मतदाताओं को रिझाने के लिए खोखले चुनावी वायदें न करें। देश के छह राज्यों में सात विधानसभा सीटों के लिए उप चुनाव की घोषणा के बाद मंगलवार को एक पत्र लिखकर चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से कहा है कि एक निश्चित प्रारूप में मतदाताओं को बताना चाहिए कि जो वादे किए जा रहे हैं, वे कितने सही हैं?

इसके अलावा मतदाताओं को यह भी बताएं कि इन्हें पूरा करने के लिए राज्य या केंद्र सरकार के पास क्या वित्तीय संसाधन हैं। निर्वाचन आयोग ने कहा कि वह चुनावी वादों पर पूर्ण जानकारी न देने और उसके वित्तीय स्थिरता पर पड़ने वाले अवांछनीय प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है क्योंकि खोखले चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे।

आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर 19 अक्टूबर तक अपना सुझाव देने को कहा है। आयोग की यह चेतावनी चुनाव सुधारों की दिशा में एक बड़ा कदम है। चुनाव सुधार के काम में तेजी से जुटे चुनाव आयोग ने जून में देश के 111 गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत राजनीतिक दलों को अपनी सूची से हटा दिया था।

साथ ही इनके चुनाव चिन्ह और मिलने वाली सभी तरह की सुविधाएं भी छीन ली थीं। आयोग इससे पहले भी 87 गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत राजनीतिक दलों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई कर चुका है। आयोग इसके अलावा चुनाव सुधारों से जुड़े कई और कदमों पर भी तेजी से काम कर रहा है।

चुनाव सुधार की मुहिम में चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को मिलने वाले छोटे-छोटे चंदे पर भी नजर रखने की रणनीति तैयार करने में जुटा है। इसे लेकर कानून मंत्रालय को एक प्रस्ताव भी भेजा है। इसमें राजनीतिक दलों को ऐसे सभी चंदे का ब्योरा भी देना होगा, जो भले ही 20 हजार से कम होगा, लेकिन एक ही व्यक्ति की ओर से साल में कई बार दिए गए चंदे का हिसाब देना होगा।

चुनाव में राजनीतिक दलों की ओर से की जाने वाली मुफ्त की योजनाओं का मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है। इस मामले में आयोग ने अदालत से कहा था मुफ्त की योजनाओं की परिभाषा तय करें। साफ-सुथरे चुनावों और राजनीतिक पारदर्शिता से ही लोकतंत्र को वैधता मिलती है। ऐसे में महत्वपूर्ण चुनावी सुधारों को लागू कराना बहुत ज़रूरी है ताकि लोकतांत्रिक भारत भ्रष्टाचार और आपराधिक माहौल से मुक्त होकर विकास और समृद्धि की ओर अग्रसर हो सके।