मथुरा: भावात्मक एकता की अलख जगाने के लिए यात्रा पर निकले शंकराचार्य

मथुरा: भावात्मक एकता की अलख जगाने के लिए यात्रा पर निकले शंकराचार्य

मथुरा, अमृत विचार। आदि शंकराचार्य की तरह देश दुनिया में भावात्मक एकता की अलख जगाने के लिए गोवर्धन पीठाधीश्वर शंकराचार्य अधोक्षजानन्द देव तीर्थ महराज एक बार फिर से निकल पड़े है। दूसरे चरण की उनकी यह या़त्रा श्रीलंका से गुरूवार से शुरू होगी।

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यात्रा उन शक्ति पीठों में जायेगी जो भारत के बाहर स्थित हैं। 19 नवंबर 2021 को शंकराचार्य ने अपनी यात्रा कान्हा की ब्रज भूमि गोवर्धन से शुरू की थी उस समय देश कोरोना महामारी से बुरी तरह ग्रसित था। उस समय उन्होंने यह यात्रा यद्यपि भावात्मक एकता स्थापित करने के लिए शुरू की थी लेकिन उस समय उदेश्य हजारों लोगों के जीवन को बचाना था इसलिए उन्होंने 12 ज्योतिर्लिंग एव देश के विभिन्न भागों में स्थित 30 शक्ति पीठ में आराधना कर देवी से इस महामारी को भारत से समाप्त करने की प्रार्थना की थी।

शंकराचार्य ने मंगलवार देर शाम शाम गोवर्धन में पत्रकारों को बताया कि उन्हें प्रसन्नता है कि देवी ने उनकी आराधना को स्वीकार किया और भारत को कोरोना महामारी से एक प्रकार से मुक्त सा कर दिया। यात्रा के दूसरे चरण में वे उन शक्ति पीठों में प्रार्थना , आराधना एवं अर्चन करेंगे जो भारत से बाहर स्थित हैं। उन्होंने श्रीलंका में स्थित शक्ति पीठ इन्द्राक्शी देवी की आराधना से शुरू करने का निश्चय किया है और इसी श्रंखला में वे गुरूवार से चार दिन तक श्रीलंका में देवी की आराधना करेंगे।

उसके बाद वे नेपाल की तीन शक्तिपीठ, भूटान, बांग्लादेश की तीन शक्ति पीठ और करांची में स्थित शक्ति पीठ आदि में पूजन अर्चन करेंगे। गोवर्धन पीठाधीश्वर ने बताया कि उन्होंने काम्याख्या पीठ,मीनाक्शी मन्दिर,काली मन्दिर,ज्वालादेवी,विन्ध्यवासिनी देवी समेत 30 शक्ति पीठों में पूजन अर्चन के दौरान पाया कि दक्षिण के लोग उत्तर और पूरब के लोग पश्चिम में अपनी संस्कृति को फैलाना चाह रहे हैं।

मथुरा,अयोध्या और काशी आने के इच्छुक लोगों की बहुत अधिक संख्या है। शंकराचार्य ने कहा कि आज देश के सामने आतंकवाद, टूटते परिवार को रोकने की बहुत बड़ी चुनौती है।आदि शंकराचार्य ने जिस समय अपनी यात्रा शुरू की थी उस समय में और आज के समय में बहुत अन्तर आ गया है।’’सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ का संदेश देने वाले देश में दरकते परिवारों को रोकने की आज सबसे बड़ी चुनौती है।

यह एक सतत चलनेवाला कार्य है इसलिए शंकराचार्यों और धर्माचार्यों को अपने मठ एवं आश्रमों से निकलकर इस खतरे को रोकने का प्रयास जगह जगह प्रवचन देकर करना चाहिए। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हाल में काशी में काशी तामिल संगमम आयोजित करने की प्रशंसा की और उम्मीद जताई कि अन्य राजनैतिक दलों के लोग भी इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कर भावात्मक एकता को मजबूत बनाने की पहल करेंगे।

शंकराचार्य ने अंत में कहा कि उन्हें प्रथम चरण की यात्रा में देश के विभिन्न भागों में पूरा सहयेाग और स्नेह मिला।उन्हें जब यह पता चला कि कोई शंकराचार्य उनके क्षेत्र में शक्तिपीठ की आराधना करने आए हैं तथा उनका यह कार्य कोरोना जैसी महामारी को भगाने के लिए है तो उन्होंने पलक पांवड़े जिस प्रकार से बिछा दिये उससे ही प्रभावित होकर वे उन्होंने देश के बाहर स्थित शक्ति पीठों में पूजन अर्चन करने का कार्य चुना है। वे श्री लंका में चार दिन रूकेंगे तथा देवी से आराधना करेंगे कि वे उन्हें उनके मिशन में उसी प्रकार का आशीर्वाद दें जैसा उन्होंने यात्रा के प्रथम चरण में दिया था। 

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