नौकरी और बसने की योजना से छात्र विदेश में पढ़ाई को देते हैं तरजीह : विशेषज्ञ 

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Published By Om Parkash chaubey
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नई दिल्ली। विशेषज्ञों और छात्रों का कहना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों के भारतीय परिसर कई लोगों के लिए पसंदीदा विकल्प नहीं हो सकते हैं, जो विदेशी डिग्री को दूसरे देश में प्रवास के लिए एक सीढ़ी के रूप में भी देखते हैं।

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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पहली बार विदेशी विश्वविद्यालयों को दाखिला प्रक्रिया और शुल्क संरचना तय करने के लिए स्वायत्तता के साथ भारत में परिसर स्थापित करने की अनुमति देने को लेकर मसौदा मानदंड का अनावरण किया है। कई विषय विशेषज्ञ और विदेश में अध्ययन करने के इच्छुक छात्रों का मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालय में अध्ययन करना केवल एक अंतरराष्ट्रीय डिग्री हासिल करने से कहीं अधिक है।

रिपुन दास एमोरी यूनिवर्सिटी के गोइजुएटा बिजनेस स्कूल में प्रबंधन की डिग्री हासिल करने के लिए इस साल अमेरिका जाने वाले हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ज्यादा छात्र इसलिए जाते हैं क्योंकि विदेशों में पढ़ाई करने से उन्हें उन देशों में बसने के लिए नौकरी के अवसर मिलते हैं, इसलिए ऐसे विश्वविद्यालयों के भारतीय परिसर से उन्हें यहां बनाए रखने में कोई मदद नहीं मिलेगी।’’

कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के एससी जॉन स्कूल ऑफ बिजनेस में पीएचडी स्कॉलर शरण बनर्जी का मानना है कि इन विदेशी विश्वविद्यालयों का महत्व अक्सर उस समुदाय में होता है जिसे आप परिसर में पाते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें परिसर स्थापित करने की अनुमति देना उसी सफलता की कहानी को दोहराना नहीं हो सकता है। यह विदेशी विश्विविद्यालयों की शोहरत या डिग्री और गहन अध्ययन के मामले में कम आकर्षक हो सकता है।’’

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजेश झा के अनुसार, हर जगह किसी विश्वविद्यालय का मुख्य परिसर प्रमुख आकर्षण होता है। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘दूसरी बात, समय के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थान स्थानीय सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में मजबूत जड़ों के साथ विकसित होते हैं।’’

आईएनटीओ यूनिवर्सिटी पार्टनरशिप द्वारा हाल में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 10 में से लगभग आठ भारतीय छात्र (76 प्रतिशत) विदेश में अध्ययन करना चाहते हैं और अपनी अंतरराष्ट्रीय डिग्री पूरी करने के बाद विदेशों में काम करने और बसने का इरादा रखते हैं।

इसी तरह, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) द्वारा अंतरराष्ट्रीय प्रवासन पैटर्न पर एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया कि आर्थिक रूप से विकसित देशों में पढ़ने वाले भारतीयों के विदेशी छात्रों के बीच अपने मेजबान देश में रहने और स्थानीय कार्यबल में शामिल होने की अधिक संभावना है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-बंबई के पूर्व छात्र और प्रकृति एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक डॉ. मिलिंद कुलकर्णी ने कहा, ‘‘इस कदम का कुछ असर होगा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि इससे विदेश में उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले छात्रों की संख्या कम होगी। वे अलग-अलग कारणों से वहां जाते हैं जैसे विकसित दुनिया में रहने का अनुभव, अलग संस्कृति में रहना, कार्य अनुभव, प्रवास आदि।’’

हालांकि, यूजीसी के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार की इस पर अलग राय है। उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय छात्र जो विदेश में अध्ययन करना चाहते हैं, निकट भविष्य में उनकी संख्या दस लाख से अधिक होगी। भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसर में विदेश जाने वाले छात्रों के केवल एक हिस्से को समाहित किया जा सकता है। इसलिए, जो संभावित प्रवासन के लिए विदेश जाते हैं पढ़ाई के बाद विदेश जाना जारी रखेंगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अन्य छात्र जो प्रवास करने की योजना नहीं बनाते हैं, वे भारत में एफएचईआई के परिसरों में अध्ययन करना चुन सकते हैं। इसलिए दोनों श्रेणी के छात्र अपना चयन करते रहेंगे और मुझे इसमें कोई दिक्कत नजर नहीं आती।’’ मसौदा मानदंड के अनुसार, देश में परिसर वाले विदेशी विश्वविद्यालय केवल ‘ऑफलाइन मोड’ में पूर्णकालिक कार्यक्रम पेश कर सकते हैं, न कि ऑनलाइन या दूरस्थ शिक्षा के जरिए।

विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों (एफएचईआई) को भारत में अपने परिसर स्थापित करने के लिए यूजीसी से अनुमति की आवश्यकता होगी। संसद में केंद्रीय शिक्षा विभाग द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 6.5 लाख से अधिक भारतीय छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश गए। आंकड़ों से यह भी पता चला है कि अधिकतर भारतीय छात्रों ने डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन को प्राथमिकता दी।

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