हल्द्वानी: क्यों आती है अमावस्या की रात

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Published By Shweta Kalakoti
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सोमनाथ मंदिर के पीछे की कहानी

दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र बेटियां थी जिनकी शादी चंद्र देवता से हुई थी। सब ही बहुत खूबसूरत थी लेकिन उन मे से सबसे ज्यादा तेजस्वी थी रोहिणी नक्षत्र जिसके प्रति चंद्र देवता का अलग झुकाव था। चंद्र देवता रोहिणी के साथ ही अधिकतर समय बिताना पसंद करते थे जिस कारण दूसरी नक्षत्र पत्नियों चमक हल्की पड़ती जा रही थी।

इसके बाद 26 नक्षत्र बेटियां अपने पिताजी के पास चंद्र देवता की शिकायत लेकर गई। जिसके पश्चयात प्रजापति अत्यंत क्रोधित हुए और चंद्र देवता को श्राप दिया की जिस तेज पर वो घमंड करते है वो खत्म हो जाएगी। श्राप का असर दिखना शुरू हो गया था और चंद्र देवता की चमक धीरे-धीरे खत्म होती दिखाई दे रही थी। 

चंद्र देवता दुख के कारण ढलते हुए दिखाई दे रहे थे तो वह अपनी पत्नियों को छोड़ कर समुद्र किनारे चले गए और उन्होंने वहां रेत से शिवलिंग बना कर स्थापित किया और ध्यान करने लग गए। महादेव उनके सामने प्रकट हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। 

चंद्र देवता ने अपनी चमक वापस मांगी लेकिन शिव जी ने कहा की ऐसा संभव नहीं हो सकता क्योंकि प्रजाति दक्ष का श्राप बहुत प्रभावशाली है। महादेव ने कहा तुम्हें तुम्हारी पूरी मिलेगी लेकिन महीने में सिर्फ एक दिन बाकी दिन तुम अपने पूर्ण प्रभाव में नहीं उभरोगे। तत्पश्चायात चंद्रमा के अमावस और पूर्णिमा का सिलसिला शुरू हो गया।Somnath-mahadev-mandir-2-16341755064x3

चंद्र देवता को सोम भी बोलते है और शिव जी को नाथ के नाम भी जाना जाता है इसलिए जहां उन्होंने शिवलिंग की स्थापना करी वह जगह सोमनाथ कहलाती है।  

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