मृदंगाचार्य पंडित राज खुशीराम का दुनिया छोड़ जाना एक युग का अंत... हमेशा के लिए थम गई पखावज की थाप

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Published By Muskan Dixit
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महान मृदंग व तबला वादक स्वामी पागल दास के प्रिय शिष्य थे खुशीराम

शबाहत हुसैन विजेता, लखनऊ, अमृत विचार: भारतीय संगीत की परंपरा ऐसी है जिसमें प्रत्येक स्वर केवल ध्वनि नहीं, बल्कि जीवन का अनुभव होता है। यह अनुभव पीढ़ी-दर-पीढ़ी बहता आया है। जैसे गंगा की धारा कभी सूखती नहीं, वैसे ही राग-रागिनियों, गायन-वादन की धारा भी प्रवाहित होती रहती है। इसी प्रवाह की एक धार थे वादन योगी मृदंगाचार्य पंडित राज खुशीराम। लखनऊ की माटी में रचे-बसे खुशीराम का इस दुनिया को अलविदा कह देना संगीत प्रेमियों को अंदर तक कचोट गया। हमेशा सज संवर कर रहने वाले, मुस्कुरा कर मिलने वाले हर दिल अजीज खुशीराम अब सिर्फ हमारी स्मृतियों में ही रहेंगे।

राज खुशीराम ने पूरी जिंदगी अमीनाबाद की पतली सी गली में गुजारी। कुछ साल पहले वह गोमतीनगर में बनाए अपने नए मकान में चले गए थे। संगीत उनके साथ इस कदर जुड़ा था कि उनका अभिवादन भी जय मृदंग बन गया था। कथकाचार्य पंडित लच्छू महाराज की शिष्या प्रख्यात कथक नृत्यांगना कपिला राज से उनकी शादी हुई। कपिला राज कथक केन्द्र की निदेशक रही हैं। पति -पत्नी दोनों टॉप क्लास कलाकार थे। कपिला राज लच्छू महाराज की शिष्या थीं तो राज खुशीराम अयोध्या के स्वामी पागल दास के शिष्य थे। पखावज उनके खून में संगीत बनकर बहता था। शानदार उर्दू बोलते थे। हर कोई उनका दोस्त था। त्योहारों में फोन पर बधाई देते। ज्यादा दिन मुलाकात न हो तो शिकायत करते। नये घर में न आने का उलाहना देते। उनकी विद्वत्ता को देखकर भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. मांडवी सिंह ने उनसे भातखंडे में अतिथि शिक्षक बनने का अनुरोध किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। राज खुशीराम के मुस्कुराते चेहरे के पीछे कितना दर्द छुपा था यह उनके बहुत करीबी ही जानते थे। पत्नी कपिला राज बीमार थीं, पीजीआई में भर्ती थीं। छोटे भाई केआर विनोद के साथ स्कूटी से जा रहे थे। रायबरेली रोड पर ट्रक ने टक्कर मार दी। केआर विनोद ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। इतने बड़े सदमे को वो पत्नी से छुपाए रहे। कुछ रोज बाद पत्नी भी शव वाहन में घर आईं। पत्नी के बाद युवा बेटे ने भी अचानक आंख मूंद लीं लेकिन इस कलाकार ने पखावज का साथ नहीं छोड़ा।
आकाशवाणी के टॉप ग्रेड कलाकार थे। लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला था। संगीत नाटक अकादमी अवार्ड मिला था। सम्मानों की श्रृंखला बहुत बड़ी है। अमीनाबाद की पतली सी गली में सीढ़ी चढ़कर उनका बड़ा सा घर आज भी है। वह गली से गुजरते थे तो गली देर तक महकती थी। शानदार कुर्ता पजामा, सदरी, गले में ढेर सारी माला और चेहरे पर मुस्कान। अपने भाइयों, मित्रों और शिष्यों से एक जैसा प्रेम करते थे। वो अक्सर कहते थे कि इस अमीनाबाद की तंग गली में जो है वो मुम्बई की चकाचौंध में भी नहीं है। कल शाम उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई थी। केजीएमयू में दिखाया और वापस गोमतीनगर लौट गये। आज शाम फिर समस्या हुई और इस बार वो ऐसी यात्रा पर चले गये, जिसने चाहने वालों की आंखों को भिगो दिया। वो तो भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह की तैयारी कर रहे थे। लेकिन कल 11 बजे जब शताब्दी समारोह शुरू होगा तो वो चिता पर सवार हो चुके होंगे।

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